सेतुबन्ध | Setubandh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका ध काश्मीर के द्वितीय प्रवरसेन का संझेत अधिक मिलता है, क्योंकि यददी प्रवस्सेन विक्रमादित्य के समाकालीम ठहरते हें | इस आधार पर कुछ विद्वानों ने इस बात को सिद्ध करने का प्रयत्न भी किया है । परन्तु विक्रमा- दित्य कै राज्य के समय राजतरंगिणी के अनुसार प्रवरसेन तीर्थयात्रा के लिये गया छुआ था । उनकी मृत्यु के दाद सावृगुस ने काश्मीर मण्दल छोड़ा है और तभी মবিন ने काश्मीएका राज्य प्राप्त फिया इस प्रकार यह बात सिद्ध नहीं होती और काश्मीर के प्रवरसेन से 'सेतुबन्ध' का सम्बन्ध स्थापित करना सम्मव नहीं जान पड़ता ! घाकाटक वंश में भी दो प्रवस्सेन हुए. है डॉ० अल्तेकर के अनु- सार इस वंश कै श्रादि पुरुष विन्थ्यशक्ति का नाम व्यक्तिवाची मे द्वोकर उपाधिसलक है। बाकाठकों का कार्यक्षेत्र इन्होंने मुन्देलखणड' अथवा आउन्प्र न सानकर विदिशा और विदमं म्ना ई । विव्य्यशक्ति के पुत्र प्रवरसेन प्रथम ने २७६ ई० से ३२५ ६० तक शासन किया । इस वंश मेँ केवल यही राजा है जिसने सम्राट की उध्राधि धारण की है और इसी ने वाकाटक रशाम्य को समस्त दक्षिण में विस्तार दिया | इसके शाद ত্র” सेन प्रथम ने अपने पितृव्य का स्थान ग्रहण किया ( ३३५ ई० से ३६० ई० ) और फिर उसके पुत्र एच्वीसेन प्रथम गे ३६० ई० से ३८४ ई० तऊ शज्य किया । इसी के समय कुन्तल ( दक्तिणी मदारणष्ट्र ) वाका- হক राज्य में मिलाया गया । यद्रपि अब यह साना जाता है कि छुन्तल राज्य को वाकाटक वंश की दूसरी शाखा के विन्ध्यसेन ने पराजित किया था, पर इस यंश के पनुख होने के नाते शब्वीसेन को कुन्तलेश कहा गया है। पप्वीसेन के समय में ही राजकुमार रुद्बसेन द्वितीय से गुप्तसप्राद चर्द- शुम द्वितीय की पुत्री परमावती का विवाह हो चुका था | इस অক वाका- रक्‌ तया ঘুম शक्ति का सहयोग हो गया था | दद्धसेन द्वितीय केवल ४ दप राज्य कर सका श्रौर उसकी मृत्यु के साथ धभावती ने अपने पिता के संरक्षण में राज्य का भार समाला | सन्‌ ४१० ई० में प्रमादती के द्वितीय पुत्र ने प्रदरसेन द्वितीय केः नाम से राज्य-मार माला, शौर उसका




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