न्यायप्रदीप | Nyay Pradeep
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about दरबारीलाल न्यायतीर्थ - Darabarilal Nyayatirth
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथम अध्याय ।
इसी तरद्द गायका लक्षण सींग, मनुष्यका छक्षण पंचेन्द्रियत आदि
भी अतिव्याप्ति क्षणामासके उदाइरण समझना चाहिये |
अब्याप्त क्षणाभास तो छक्ष्यके भीतर द्वी रहता है और अति-
व्याप्त रक्षणाभास मीतर ओर बाहर-दोनो जगह-रहता है ।
लक्षणरूपमें कह्देगये धर्मेका, लक्ष्यमे बिलकुल न रहना
+ असम्भव ' दोष है । जैसे गधेका लक्षण सौग । सींग किसी
भी गेम नहीं होता, इसच्यि यहां असम्भव दोष है ओर यह्
दोषवाला लक्षण, असम्भवि लक्षणामास कहकाता है । इसीतरहं
जीवका लक्षण अचेतनत्व ओर पुद्रठ (पृथ्वी आदि) का रक्षण
चेतनत्व आदि भी असम्भवि रक्षणामास है ।
कुछ ढक्षणाभास ऐसे भी होते हैं, जिनमें अव्याप्ति और अति-
व्याप्ति-दोनों-ही दोष पाये जाते हैं । जैसे-विद्वान उसे कहते हैं.
जो अंग्रेजी अथवा संस्कृत जानता हो । परन्तु बहुतसे विद्वान ऐसे हैं जो
अंग्रेजी और संस्कृत दोनों नहीं जानते फिर भी वे विद्वान् हैं; इसलिये
अव्याप्ति दोष है | तथा बहुतसे मूख भी संगति आदिसे या मातृभाषा
होनेसे अंग्रेजी या संस्कृत बोलने लहुगते हैं लेकिन वे विद्वान
नहीं होते, इसलिये यहां अतिव्याप्ति दोष भी है । प्राचीन प्रन्थ-
कारोने ऐसे मिश्रलक्षणाभासोंका अलग उछेख नहीं किया है ।
क्योंकि लक्षणामासके द्वारा लछक्षणके दोष ह्वी के जते है । द्वेत्वा-
भासमें भी एक जगद्द अनेक दोष दूोते हैं, परन्तु मिश्रहेत्वा-
मासोका नाम अल्ग नदीं रक्खाजाता; क्योंकि इससे व्यथका
विस्तार होता है । यही बात खक्षणामासके विषयमे भी समक्षना
चाहिये | इसीलिये लक्षणाभासके तीन ही भेद किये गये हैं ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...