विवाह क्षेत्र प्रकाश | Vivah Kshetra Prakash
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
178
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जैनोलॉजी में शोध करने के लिए आदर्श रूप से समर्पित एक महान व्यक्ति पं. जुगलकिशोर जैन मुख्तार “युगवीर” का जन्म सरसावा, जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। पंडित जुगल किशोर जैन मुख्तार जी के पिता का नाम श्री नाथूमल जैन “चौधरी” और माता का नाम श्रीमती भुई देवी जैन था। पं जुगल किशोर जैन मुख्तार जी की दादी का नाम रामीबाई जी जैन व दादा का नाम सुंदरलाल जी जैन था ।
इनकी दो पुत्रिया थी । जिनका नाम सन्मति जैन और विद्यावती जैन था।
पंडित जुगलकिशोर जैन “मुख्तार” जी जैन(अग्रवाल) परिवार में पैदा हुए थे। इनका जन्म मंगसीर शुक्ला 11, संवत 1934 (16 दिसम्बर 1877) में हुआ था।
इनको प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारस
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जड्देश्य का अपलाय आदि | ११
~~~ ~~~
साथ हो, यद्द मोलम हो जाता है कि वे कितने परिवसंनश्ीख
हुआ करते हैं। ऐली हालतमें विधाद जेले लौकिक घमो और
सांसारिक व्यवद्याासेक्रे लिये किसी आगमका आश्रय खेना
शर्थात् यद ढ ड खोज लगाना कि छागममे(किस प्रकारसे विवाद
'करना लिखा है, बिलकुल व्यर्थ है। कद्दया भी हे--
“संसारव्यवहार तु स्षतःसिद्ध वुथागमः#।'”
अथोत् -संखार भ्यवहारके स्वतः सिद्ध হান उसके लिये
कामम की जरूरत नहीं ।
वस्तुतः श्रायम प्रन्धा मे एस प्रकारके लौकिक धर्माः शौर
लोकाशितविधानोका कोई क्रम निद्धांरित नहीं होता 1 वे सब
लोकग्रवृत्ति पर श्रषलश्ित रहते है । हाँ, कुछ जिषर्णाचारों जेसे
झनार्ष प्रस्थोमे विवाह-विधानोंका वर्णन जरूर पाया जाता है। पर
न्तु वे आगम ग्रन्थ नहीं ह---उन्हें आप्त भगवानके वचन नहीं कद
सकते और न वे आप्तवचनानसार लिखेगयं हें--इतने पर भी
कछु प्रन्थ तो उनमें से बिलकुल ही जाली और बनाधटी हैं; जैसा
कि 'जिनसेनत्रिवर्णायार' और 'मद्गबाहुसंदहिताके' के परीक्षा-
लेखों से प्रयट है * | वास्तवमें ये सथ प्रन्थ एक प्रकारके
लौकिक प्रन्थ हैं। इनमें प्रद्त विषयके वर्णतको तात्कालिक
और तद्देशीय रंध्तिरिधाजोका उल्लेख मात्र सामभना चाहिये,
अथवा यो कहना चाहिये (के प्रन्थकत्ताझोको उस प्रकारके
रीतिरिबाजोको प्रचलित करना इृष्ट था । इससे श्रध्रिक उन्हें
यह अश्रीसोमदेज आचजाय्य का वचन है।
>* थे सथ लेज 'प्रन्थपरीक्ता' नामसे पहदिले जेमहितैषी
प्रमें प्रकाशित छुए थे ओर अब कुछ समयसे अलग पस्तका
कार भी छुप मये हैं। बस्चई ओर इटाया आदि स्थरनोंसे
নিব ই
User Reviews
No Reviews | Add Yours...