तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य - परम्परा | Tirthakar Mahavir Aur Unaki Aacharya - Parampara

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Tirthakar Mahavir Aur Unaki Aacharya - Parampara  by डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री - Dr. Nemichandra Shastri

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री - Dr. Nemichandra Shastri

Add Infomation About. Dr. Nemichandra Shastri

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
कृष्णा अमावस्या, वीर-निर्वाण संवत्‌ २५०२, दिनाडू: १३ नवम्बर १९७५ तक पूरे एक वर्ष मनायी जावेगी। यह मज्जञर-प्रसद्भ भो उक्त ग्रन्थ-निर्माणके लिए उत्प्रेरक रहा । अतः अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्रत्परिषदने पाँच वषं पूवं इस महान्‌ दंभ अवसरपर तीर्थकर महावीर ओर उनके दशंनसे सम्बन्धित विशाल एवं तथ्यपूर्ण ग्रन्थके निर्माण और प्रकाशनका निश्चय तथा संकल्प किया । परिषदने इसके हेतु अनेक बेठक कीं और उनमें ग्रल्थकी रूपरेखापर गम्भीरतासे ऊहापोह किया । फलत: ग्रन्थका नाम 'तीर्थद्धर सहावीर ओर उनकी आचार्य॑- परम्परा' निर्णीत हुआ और लेखनका दायित्व विद्वत्यरिषद्‌के तत्कालीन अध्यक्ष, अनेक ग्रन्थोंके लेखक, मूर्धन्य-मनीषी, आचाय॑ नेमिचन्द्र शास्त्री आरा (बिहार) ने सह्ष स्वीकार किया। आचायं शास्त्रीने पाँच वर्ष लगातार कठोर परिश्रम, अद्भुत लगन और असाधारण अध्यवसायसे उसे चार खण्डों तथा लगभग २००० (दो हजार) पृष्ठोंमें सृजित करके ३० सितम्बर १९७३ को विद्वत्परिषद्को प्रकाश- नाथं दे दिया । विचार हुभा कि समग्र ग्रन्थका एक बार वाचन कर लिया जाय । आचायं शास्त्री स्याद्वाद महाविद्याल्यकी प्रबन्धकारिणीको वैठकमें सम्मित होनेके लिए ३० सितम्बर १९७२ को वाराणसी पधारे थे । ओर अपने साथ उक्त ग्रन्थके चारों खण्ड लेते आये थे | अत: १ अक्तूबर १९७३ से १५ अवतूबर १९७३ तक १५ दिन वाराणसीमे ही प्रतिदिन प्रायः तीन समय तीन-तीन घण्टे ग्रन्थका वाचन हुआ । वाचनमें आचाय॑ शास्त्रीके अतिरिक्त सिद्धान्ताचायं श्रद्धेय पण्डित केलाशचन्द्रजी शास्त्री पूर्व प्रधानाचायं स्याद्राद महाविद्यालय वाराणसी, डॉक्टर ज्योतिप्रसाददी लखनऊ ओर हम सम्मिलित रहते थे । आचाय॑ शास्त्रों स्वयं वाचते थे और हमलोग सुनते थे। यथावसर आवश्यकता पड़ने पर सुझाव भी दे दिये जाते थे। यह वाचन १५ अक्तूबर १९७३ को समाप्त हुआ और १६ अक्तूबर १९७३ को ग्रन्थ प्रकाशनार्थं महावीर प्रेसको दे दिया गया | भ्रन्य-परिचय इस विशाल एवं असामान्य ग्रन्थका यहाँ संक्षेपमें परिचय दिया जाता है, जिससे ग्रन्थ कितना महत्त्वपूर्ण है और लेखकने उसके साथ कितना अमेय परि- श्रम किया है, यह सहजमें ज्ञात हो सकेगा | यहाँ तृतीय खण्ड का परिचय प्रस्तुत है-- १४ : तीथकर महावीर और उनकी जआआचार्य-परम्परा




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now