मर्जी खुदा की | Marzi Khuda Ki
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
186
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
विमल मित्र - Vimal Mitra
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शम्भुनाथ पांडेय - shambhunath Pandey
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)यह कैसा परिहास / 15
शास्त्री जी एक बार जन्म-पत्मी देखते और फिर मुंह उठाकर सवात करते।
उन्होंने कहा---“लेकिन इस लडके को वजह से तुम्हे बहुत अश्ान्ति हो रही हैत”
उस महिला ने कहा---“अशान्ति हो रही है। अशान्ति नही होती, तो क्या मैं
यू ही आपके पास दौड़ी आती ? इसके जन्म के बाद से ही मैं घोर अशान्ति मे हूं । सो
अपनी अशान्ति को मुझे फिक्र नही । मेरी किस्मत मे सुख नही, न सदी । यह् तद्का
किस तरह सुखी हो और किस तरह आदमी बने, यही आप वतला दीजिये । यदि
किसी यज्ञ, होम या प्रूजा-पाठ की जरूरत हो तो वह भी बता दीजिए | इसके लिए
जितने भी रुपये खर्च हो, सो मैं देने के लिए तैयार हु। कहिए, कितने रुपये लगेंगे ?
मैं आपको इसी वक्त दे देती हु ।”
गौरीनाथ शास्त्रीजी ने कह्य---“किस्मत के लेख को कौन मिटा सकता है बेटी !
मौर फिर यज्ञ, भौर पूजा-पाठ में मेरा विश्वास नहीं ॥ फिर भी भगवान के पास
दिन-रात प्रार्थना करो । उससे अगर कोई राह निकल आये तो देखो'**1”
उस महिला ने कहा--“भगवान से प्रार्थना तो रोज ही करती हू । लेकिन मुझ
जैसी अभागी की वात भला भगवान सुर्नेंगे भी क्यो २”
शास्त्री जी ने उमर दिलासा देते हुए कहा+-“सुनेंगे क्यों नहीं? भगवान तो
मर्वश्ञ है। उतके लिए न कोई छोटा है, न कोई वडा, न कोई अमीर है, न कोई
गरीब । उन्हें मनप्राणों से पुकारने पर वे जरूर सुनेंगे बेटी ।
“तेकिन मैं तो पापन हैं 17
शास्त्री जी ने कहा--”मनुध्य-भात्र ही पापी होता है। अगर हम पापी नहीं
हीते, तो सभी देवता बन जाते । इसीलिए तो भगवान का सौर एक नामं पतित-
पावन भी है। उन्हें तुम पुकारों | तुम पर उनकी दया भी हो सकती है।”
उस महिला ने कहा--“दया अगर होती तो मुझे भी तो इसका कुछ पता
चलता । मैं तो दिन-रात भगवान को पुकारती हू कितने ही देवी-देवताओं की पूजा
करती हू । सभी देवी-देवताओं से प्रार्थना करती हू कि वे मेरे लड़के को आदमी
बना दे। लेकिन जैसे-जैसे उसकी उम्र बढती जा रही है, वैसे-वैंस वह और भी
आवारा होता जा रहा है। नही तो वया भला इस उम्र में कोई शराव पीता है ?”
“शराब पीता है? क्या सचमुच ? मैं तो कह ही चुका हू कि राहु नीचस्थ
है, सो भी चदुर्य लग्त मे! बह चतुर्थ स्थान है मातृ-स्थान। साथ ही राहु चन्द्रमा
की ओर सोधा दृष्टिपात कर रहा है। भौर किर आय-पति वृहस्पति नीचस्थ है,
यहू बात भी मैंने जन्म-पत्री में लिख दी है। लो, देखो नाव!
उम महिला की आंखों से टप-टप आसू टपकने लगे। पक
उसने कहा--उसके प्रतिकार के लिए ही तो आपके पास आई हूँ पडित जौ ।
आपप मुझे बता दीजिए कि क्या करना होगा ? अयर तारकेश्वर के मन्दिर में जाकर
धरना देने के लिए कहे तो उसके लिए भी तैयार हू 1 उस लड़के के बारे में सोच-
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