नतत्त्वमीमांसा की समीक्षा | Natattwmimansa Ki Samiksa
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
378
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)समीत्ता छ
পা সানী জীপ
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यवहार का देशपणा है अथवा ते वयवहारकरिं उपदेशने
ओग्य हैं।
टीका-बहां इृष्टान्त द्वारकरि कहे हैं | जे पुरुष अन्त के पाक
-फरि उतर्या लो शुद्ध सुबरण तिहस्थानीय जो वस्तु झा उत्कृष्ट
असाधारण भाव तिनिकृ' अनुभव है, तिनिके प्रथम द्वितीय
आदि अनेक पाक की परवरा करि पच्यमान जो अशुद्ध खबरे
तिम स्थानिय जो अनुकृष्ट मध्यम माव तिसके अनुभव करि
शुद्धपणाते शुद्ध द्रव्य का शद्रेलीषश्ा करि परगट क्रिया दै अच
लित श्रखड एक स्वभाव रुप एक भाव जाने ऐसा शुद्ध नय द।
सोही उपरि ही उपरि का एक अ्रतिवर्शिका स्थानीयपणार्ते
जान्या हा प्रयोजनवान् दै । व्रि ञे केर पुरुष प्रथम द्वितीय
आदि अनेक पाक की परपरा करि. पच्यमान करि
वही सुवणं लिसस्थानोय जो वस्तु का अलुत्कृष्ट मध्यम भाव
ताक अनुभवे दै, निनिके अन्त के पाक करि ही उतरया जो शुद्ध
सुवणं तिस स्थानीय वस्तु का उत्क्ृट माव বাচ্ছা আন্তমন करि
शल्य पणातं अशुद्ध द्रव्य का आदेशीपणाकरि दिखाया दै न्यायं
#यारा एक भाव सरूप अनेक भाव जाने ऐसा व्यवहार नेये है।
सोद्दी विचित्र अनेक जे वर्णमाला विस स्थानीयपणातें जात्या
हुआ तिस काल प्रयोजनवान् दै । जति तीर्थं अर तीथं का फल
नि ठोऊनिका ऐसा ही व्यवस्थित पना है। तीर्थ जा करि
ईतरिए ऐसा तो व्यवद्वार धर्म अर जो पार होना सो व्यवहारं
धमै का फल, अपना स्वरूप का पावना सो तीथं छल है । हष्षं
उक्त च गाथा-
जो जिणमय पवज्जइ ता मा, ववहार शिच्छये शय ।
शक््फेण विणा छिज्जड तित्थं, अण्णेण उग वच्च |
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