चीनी यात्री फाहियान का यात्रा विवरण | Chini Yatri Fahiyan Ka Yatra-vivaran

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Chini Yatri Fahiyan Ka Yatra-vivaran by जगन्मोहन वर्मा - Jagnmohan Varma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न श्रभ्यास करने लगा हे! उसे जान पड़ा कि जा अंश इस देश मे है वद्द भ्रघूरा श्रौर क्रमश्रष्ट है । उसे विनय-पिटक की, जिसका विशेष संवंध श्रमणों के संघ से दै, यद्द झवस्था देख वहुत दुःख हुआ । उसने अपने मन में दृढ़ संकल्प किया कि जिस प्रकार हो सके विनय-पिटक की पूरी प्रति भारतवर्ष से लाकर मैं उसका प्रचार इस देश के मिज्लुसंघ मे करूंगा । वद्द इसी चिंता मे था कि “द्देकिंग” 'तावचिंग”, 'द्ेयिंग', श्रौर 'हेवीई” नामक चार श्रौर सिल्लुत्रां से उसकी भेंट हुईं । उस समय फादइियान “चागगान' के विहार से रदता था । पॉचों भिज्लुप्रां ने सिलिकर यह निश्वय किया कि इम लोग साथ साथ भारतवर्ष की श्रार तीथेयात्रा को चले ्ौर तीथीं में श्रमण करते हुए वहां के मिक्नुओओ से त्रिपिटक के प्रथों की प्रतियां प्राप्त करें । यह सम्मति कर सन्‌ ४०० मे सब के सब “चांगगान” से भारतवर्ष की यात्रा के लिये चले । “चांगगान' से “लुंग” प्रदेश होकर वे “'कीनकीई' प्रदेश में आए । यहां उन्होंने “वर्पावास” किया । भारतवर्ष, वर्मा, स्याम श्रौीर लका के बौद्ध मिल्लु वर्षा ऋतु मे एक दी स्थान पर रहते दें । चीन देश में वर्षावास पाँचवें वा छठे मद्दीने की कृष्ण प्रति- पदा से प्रारंभ द्ोता है । वद्दां झमांत सास का व्यवहार दाता है। वष का श्रारंभ फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा से दाता है। वर्षा- काल तीन मास का होता है | जा लोग वर्षावास पंचम मास की कृष्ण प्रतिपदा से करते हैं उनके वर्षावास की समाप्ति श्रष्टम मास की पूर्णिमा के दिन होती दै श्रौर जिनके वर्षावास का श्रारंभ




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