भगवान महावीर और उनकी अहिंसा | Bhagwan Mahaveer Aur Unki Ahinsa

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Bhagwan Mahaveer Aur Unki Ahinsa by महावीर - Mahaveer

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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के ० १५ धन नहीं स्खेगे । इस प्रकार सीमा वाध लेनेःसे हमों लालसा कम होती जायेगी ओर हम एक বসব ही „^ लौकिक कायं, व्यापार आदि करेगे ओर अपना वची हज ˆ समय व घन दूसरों का उपकार करने भौर अपनी आत्मा की उन्नति में लगा सकेंगे। यही नहीं, इसके फलस्वरूप, उपलब्ध वस्तुओं का वटवारा भी अधिक से अधिक व्यक्तियों से हो सकेगा 1 तात्पयं यह है कि यदि भगवान महावीर के इस उपदेश का पालन किया जाये तो आज जो वर्ग- संघर्ष हो रहा है वह स्वयमेव ही दूर हो जायेगा । इस विषय पर हम एक अन्य हृष्टिकोण से भी विचार कर सकते हैं । संसार में किसी भी व्यक्ति की तृष्णाओं और इच्छाओं की कोई सीमा नहीं है । हमारी एक इच्छा पूरी हो नहीं पाती कि अन्य अनेकों नई इच्छाएँ आकर खड़ी हो जाती हैं। यही दशा तृष्णाओं की भी है । यदि आज हमारे पास एक लाख रुपया है तो हम दस लाख पाने की तृष्णा करने लगते हैं, और जब दस लाख हो जाता है तो एक करोड़ पाने की तृष्णा हो जाती है। इस प्रकार हम देखते हैं कि किसी भी व्यक्ति की तृष्णाओं व इच्छाओं का कोई अन्त नहीं है। अपनी तृष्णाओं व इच्छाओं की पूर्ति के लिये हम तरह-तरह के अन्याय व अत्याचार करते हैं और अनु- चित साधनों का प्रयोग करते हैं । और ऐसा करते समय हम इस वात की तनिक भी चिन्ता नहीं करते कि हमारे इन कार्यों से अन्य व्यक्तियों तथा पशु-पक्षियों को कितना कष्ट हो रहा है । विडस्वना तो यह है कि यह सब अन्याय व अत्याचार करने के पश्चात्‌ भी यह निश्चित नहीं होता कि हमारी सभी तृष्णाएँ व इच्छाएँ पूरी हो ही जायेंगी इन अन्यायों व अनुचित साधनों के फलस्वरूप व्यक्तियों १५ <...




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