कौटिल्य का अर्थशास्त्र भाग २ | Kautiliy Ka Aarthshatra Part -2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
48 MB
कुल पष्ठ :
1102
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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तत्कालीन समाज के सर्वाहारी वर्ग के प्रति शेष जनता की घारणा कितनी
विक्ुब्ध तथा द्वेषयुक्त थी, इसका एक उड़ाहरण डाँगे जी ने उद्धव किया है,
जिससें कष्ठा गया है कि :---
“हमारे पाल अनेक काम, भनेक इच्छायें भौर अनेक संकरुप हैं । बढ़ई
की कामना आरे की आवाज सुनने की है ।- वेद, रोगी की कराह सुनने की
अ्भिलाषा रखता है। ब्राह्मण को यजमान की अभिलाषा है। क्षपनी छकड़ी,
पंखा, निहाई और भट्दी को छेकर छुद्दार किसी धनी की राह देख रहा है। में
एक गायक हूँ । मेरा बाप बेच है। मेरी माँ अक्ष कूटती है। जिस तरह से
चरवाहे गायों के पीछे दौड़ते है, हम रोग उसी तरह से धन के पीठे दौड़ रटे
৯৮ ( ऋग्वेद ९।११२-१-२ ) ।
हस प्रकार सारा समाज श्रम के अभाव में दुःखी ओौर उपयुक्त जीविका
पाने के लिए विकल था । धन-संपत्ति का सारा उत्तराधिकार कुछ ही व्यक्तियों
ने हङ़प लिया था और शेष सारा बृहत् समाज, सारे शिर्पज्ञ, कलाकार भोर
कारीगर आजीविका के लिये तड़प रहे थे । जन-सामान्य की इस सामूहिक
माँग ने तत्कालीन समाज में एक नयी क्रोति को जन्म दिया ।
इस क्रांति का पहिला प्रभाव तो प्राचीन सास्यसंघ की एकता पर पढ़ा।
डसमें आत्म-विरोध बढ़ते जा रहे थे और शनेः-हानेः उसके टुकड़े-टुकड़े हो रहे
थे। प्राचीन यज्ञ-गण-गोत्र के विरोध में उत्पादन के नये सरबन्ध उग रहे थे ।
दास प्रथा के शाधार पर निर्मित ब्यक्तिगत-संपत्ति की व्यवस्था अब समानता
क्षौर स्वाघीनता के आधार पर निर्मित नयी व्यवस्या के आगे ध्वस्त होने रुग
गयी थी । भा्यं-गण जव गृष्ट-युद्ध से बुरी तरह धिर गये ये।
चर्ण-ब्यवस्था के कारण जिस नयी आर्थिक व्यवस्था का जन्म हुआ था
ओर जो निरन्तर ही विकसित हो रहो थी उसने आयों की प्राचीन अखंड
गण-व्यवस्था को पराभूत कर लिया था । अपनी स्थिति को स्थिर बनाये रखने
के लिये गणों ने हवन और दान के पुराने नियमों के पालनार्थ आवाज उठायी
भर प्राचीन प्रथा के अनुसार उस्पादन के उपभोग, चितरण तथा उपयोग का
नारा लगाया; किन्तु उन्तके ये उपदेश अब सफल न हो सके । यद्यपि गर्णों के
यीच घनी और निधन दोनों प्रकार के लोग थे, तथापि धनी वर्ग ही छाभान्वित
था | बद्ध-चृन्न वर्ण के संपत्तिशाली वर्ग विशों ओर शूद्धों के श्रम के शोषक बने
हए थे; दासो जौर पशुओं का एकाधिकार स्वामित्व वे पहिले ही से आप्त कर
घुके थे । यदहदी कारण थे, जिनमें वर्ण-मेद, वर्ग-सेद में बदक गया और भास-
युद्ध तथा गृह-युद्ध की भावना तेजी से उमड़ पड़ी ।
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