अधूरा स्वर्ग | Adhura Swarg

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : अधूरा स्वर्ग  - Adhura Swarg

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about भगवती प्रसाद बाजपेयी - Bhagwati Prasad Bajpeyi

Add Infomation AboutBhagwati Prasad Bajpeyi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
१८ प्रयूरा দন गये ाव्द श्रीर्‌ वचन श्रव अपना स्वरूप बदल कर নিহিত সব समभाने लगे। दोनों एक-दूसरे से मिलने के लिए व्याकुल ही उठते भौर भ्रधीरता के साथ मिलन की प्रतीना करते । दोनों ही किश्ोरावस्था पारकर योवन की पश्मराई में प्रवेश कर घुर्के थे और दोनों के ही हृदय - में बचपन का स्तेह योवन का मधुर प्यार बनकर प्रयोग की अंगड़ाइयाँ लेने लगा । वाल्यावस्था के হাই दोहराये गये तो दोनों ने एक-दूसरे के प्यार को गले से समराना स्वीकार कर लिया 1 चतुरसिह्‌ गाँव जाकर पिता का हाथ चेंढाने लगा, परन्तु पढ़ें-लिसे होने के कारण उसने भ्रपत्ती आय बढ़ाने के लिए भ्रन्य साधनों पर विचार करना प्रारम्भ किया । एक दिन वह अपने घर के बरोठे में ही छोटी-सी दुकान खोलकर बेठ गया । चह दूसरे-चोये फ़तेहपुर जाता ओर छोटी-मोटी “मयी-नयी तरह की वस्तुएँ लाकर अच्छा पैसा क्रमाता। क्रालान्तर में -लवयुवकों का एके दल संगठित. कर वह्‌ उनको नेता यन गया । , ` हाथ में चार पैसे हों श्रौर दो-चार व्यक्ति हाँ-में-हाँ मिलाने वाले हों तो नेता बनते कितनी देर लगती है। अतः सचमुच एक दिन चतुरत्तिह “ने राजनीति में प्रवेश कर लिया। वह एक के वाद एक सगठन में घसता और जब दूसरे का पल्ला भारी पाता, तो अपने लाम के लिए दुसरे संगठन में मिल जाता । घीरे-घीरें उसकी ख्याति इतनी बढ़ गयी कि उस क्षेत्र में बिना उसकी सहायता फे चुनाव में विजयी होना श्रसम्भव समझा जाने लगा । ह अ्रव उसकी सहायता से विजयी प्रत्याशी एवं आगामी चुनाव में ` विजय की कामना करने वाले श्रन्य सभी उसकी कृपा दृष्टि के लालायित “रहते । उचित-अनुचित सभी कार्य उसके द्वारा होते थे । अधिकारीगण {स्वयं उसकी प्रसन्नता मे ग्रपनी मलाई मानते ये । ` धीरे-धीरे उसने सरकारी ऋण लेकर अनेक कार्य प्रारंम्भ' कर दिये व्ये और कई मकान एवे द्काने वना लीं 1




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now