आत्म-संयम | Atm Sanyam

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Atm Sanyam by जे. के. शर्मा - J. K. Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अनीतिकी राहपर : नीतिनाशकी ओर चूड़ामणि है, उनका सघटन कितना बढिया है, कितनी विश्ञाल पूजी इस कारबारमे लगा दी गई है और उसे चलानेके तरीके सर्वागपूर्णतामे कैसे बेजोड़ है ।” “इस साहित्यका मनुष्योके मनपर इतना जबद॑स्त और ऐसा विलक्षण प्रभाव पुडा है कि व्यक्तिका सारा मानस जीवन उसके रगसे रग गया है और एक प्रकारके गौण काम जीवनका निर्माण हो गया है जिसका अस्तित्व सर्वाक्षमे उसकी कल्पनामे ही होता ই |” अनन्तर श्री ब्यूरो श्री रूइसाका यह्‌ करुणा-जनक पैराग्राफ उद्धृत करते हू-- “यह्‌ सारा अश्टीर জীহ कामज कूरतासे भरा साहित्य अगणित मनुष्योके किए अति प्रबल प्रखोभनकी वस्तु बन रहा ह, ओर इस साहित्य- की जवदंस्त खपत असदिग्धरूपमे बताती ह किं कल्पनामे दूसरे काम-जीवनका निर्माण कर लेनेवालोकी सख्या लाखो तकं पहुचती हँ । जो लोग इसकी वदोलत पागरुखानोमे पहुंच गये हं उनकातौ जिक्र ही क्या; सासकर आजके-से समयमे जब अखवारो और पुस्तकोका दुरुपयोग सव ओर उन अन्त करणोकी सृष्टि कर रहे है, जिन्हे डब्ल जेम्स अन्तर्जंगत॒की अनेकता' कहते हे और जिसमें विचरण कर हर आदमी वर्तमान जीवनके कर्त्त॑व्योको भूल सकता है ।” याद रहे, ये सारे घातक परिणाम एक ही मूलगत भ्रमके कुफल हें । वह्‌ यह हँ कि विषय-भोग, सन्तानकी इच्छाके विना भी सानव-प्रकृतिके लिए आवश्यक है और उसके নিলা पुरुष हो या स्त्री किसीका भी पूर्ण विकास नही हो सकता। ज्यो ही यह भ्रम दिमागमे घुसा ओर मनुष्य जिसे बुराई समभता था उसे भलाईके रूपमे देखने छगा कि फिर वह विषय- वासनाको जगाने ओर उसकी तृप्तिसे सहायक होनेके नित नये उपाय ढूढने लगता है । इसके बाद श्री ब्यूरीने प्रमाण देकर दिखाया है कि आजके दैनिकपन, मासिक, परचे, उपन्यास, चित्र और नाटक-सिनेमा किस तरह इस हीनच है दिन-दिन अधिकाधिक भडका और उसकी तृप्तिकी सामग्री जुटा रहे है ।




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