सर्वाधिकार सुरक्षित | Sarvadhikar Surakshit

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Sarvadhikar Surakshit by जे. के. शर्मा - J. K. Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका १७ के मा्गें पर अटल वने रहते है । यह्‌ चित्र कर्तृत्व की प्रेरणा के लिए चित्रित किया गया ह । यथार्थवादी গ্সান্হী का उत्कृष्ट उदाहरणं ह । यह प्रवृत्ति विदवेदवर के समस्तं वक्तव्यो में परिलक्षित होती हं -नैसे- “क्या आप चाहते है कि मे अपना ईमान कुछ चाँदी के टुकड़ो में बेच दूं, जिनकी सेवा करने को खडा हुआ हें, उन पर ही जुम करूँ और अपने स्वार्थ के लिए भ्रपनी' आत्मा को धोखा देने लूगूँ। सचाई और ईमान पर चलने वालो की दशा तो सदा खराब रहती है, पर उनका सिर सदा ऊँचा रहता है । यदि परिस्थिति को अपने अनुकूछ न वना सका, तो में इस क्षेत्र से दूर हो जाऊँगा। पर, मुझे पूरा भरोसा है कि अन्तिम विजय सत्य की ही होगी ।” में अपना कत्तंव्यपपालन कर रहा हूँ और भगवान्‌ मेरी परीक्षा ले रहे है। सच्चे लोक-सेवकों, निस्वार्थी कार्यकर्ताओं और होनहार लेखकों के मूल्य को अभी हमारे राष्ट्र ने नही पहिचाना है।” घर-गृहस्थी! तथा ससार की विषमताओं में पिसता हुआ भी विश्वेश्वर अपने आदर्श के लिए युद्ध करता है। उसका श्रादर्शवाद यथा्यवाद के भीतर से ही पनपता है। अवसाद के साथ ही आशा की एक पतली रेखा उसके जीवन- दर्शन में वर्तमान है । २




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