सुकवि संकीर्तन | Sukavi - Samkirtan

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Sukavi - Samkirtan by दुलारेलाल भार्गव - Dularelal Bhargav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मदामहोपाध्याग्र पंडित दुर्गाप्रसाद १३ गया। यही नहीं, पत्नी की मृत्यु के লব उनके छोटे भाई ने भी स्वर का सार्ग लिया ।के इस प्रकार विपत्ति के ऊपर विपत्ति पड़ने पर उनका चित्त अत्यंत उद्दिन हा उठा; और उन्होंने जबू'छोड़ अपनी জন্ম- भूमि को जाने का निश्चय किया । इस निश्चय को काय-रूप में परिणत करने के पहले बह हिमालय के दशनीय स्थाना को देखने के लिये गए, और दृर-दूर तक घूमकर जबू लौट आए । इस प्रकार कुछ दिनों तक्ू बाहर पर्यटन करने से उनके चित्त को थोड़ी-बहुत शाति मिलो ; परतु जबू मे अधिक समय तक रहने मे असमर्थ होकर उन्होंने वहाँ से प्रस्थान कर दिया । माग मे अपने पिता के चिर-परिचित स्थल कॉगड़ा होते हुए वह अपने घर, हमज'्पुर, आए | कुछ काल व्यत्तीत होने पर, अपने दृष्ट-मित्रों और कुट'बियों के इच्छानुसार, हमजापुर स, उन्होंने अपना दूसरा व्याह किया, और चद्‌ सुख स रहने लगे । पंडित {गा ग्खाद्‌ लिख समग्र च्रपने गोव, हमजापुर, म धे, खम समय उन्होंने जयपुर के महाराज रामसिह की गुख- माह ऊताष्रत्यादि-संचंधिनी व्रहूत সহাঁলা सुनी । अतएव उनसे मिलने की इच्छा से वह जयपुर गए, और महाराज रामसिह हराम. ও টা রেসি এগার, হি শশা ও প্রি করত আত | আজ ক | পার শপ आमन আর १ /श्रथ कालकरालमन्त्रणादहहामुष्य वधूदिय যী । श्रतुजोऽप्यगमत्ततः परं सटमास्या दि गवेधणाय किन्‌ 1১, | শেক হত १




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