अनेकान्त | Anekant
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
294
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जैनोलॉजी में शोध करने के लिए आदर्श रूप से समर्पित एक महान व्यक्ति पं. जुगलकिशोर जैन मुख्तार “युगवीर” का जन्म सरसावा, जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। पंडित जुगल किशोर जैन मुख्तार जी के पिता का नाम श्री नाथूमल जैन “चौधरी” और माता का नाम श्रीमती भुई देवी जैन था। पं जुगल किशोर जैन मुख्तार जी की दादी का नाम रामीबाई जी जैन व दादा का नाम सुंदरलाल जी जैन था ।
इनकी दो पुत्रिया थी । जिनका नाम सन्मति जैन और विद्यावती जैन था।
पंडित जुगलकिशोर जैन “मुख्तार” जी जैन(अग्रवाल) परिवार में पैदा हुए थे। इनका जन्म मंगसीर शुक्ला 11, संवत 1934 (16 दिसम्बर 1877) में हुआ था।
इनको प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारस
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)धं० शिरोमणिदास कुल + 'परंसार सतसई' {१
अथ दान गृण दोष वर्णक--
शोहा-हृवण पंकहु त्यानि कं, भूषण पचहू वास ।
गृण सात हू सुनि दान के, नव बिधि पुण्य प्रकास॥ १३८
अथ दूषण--
विलम्ब विमुख अग्रिय वचन, आदर चित्तनहोय।
देकरि पश्जाताप करि, दूषण पचहु सोय ॥१३६
मथ भूषण--
आनंद भादर प्रिय वचन, जनम सफल निज मानि।
निर्मल भाव जु अति करे, भूषण पंचहु जानि ॥१४०
अथ गृण--
श्रद्धा ज्ञान अलोभता, दया क्षमा निज शक्ति ।
হালা गुण ये सप्त कहि, करे भाव सौं भक्ति ॥१४१
अथ नव प्रकार पुण्य---
चौपाई--पात्रहि पड़गाहै कर जोडि,
चऊ आसन जु घरे समोरि।
चरण धोय बंद तसु पाय,
पुनि सो विधि सौ पूज कराय ।' १४२
मन वच काय रसोई शुद्ध,
नव विधि पुण्य कहो सुनि बुद्ध ।
पुनि सुनि मल चउदह दुखदाई,
ए पुनि दान न दीजं भाई ॥१४३
अथ चउदह मल व्णन-
कंद मूल फल हरति जु होय,
पान कूल बहुबीजा सोय ।
मांस सध्िर जो सगति भयो,
रोम, चाम, जीव वध्र तहु छयो ॥१४४
छडहः स्वाद फफूडा लगे,
होइ दुर्गंध बहुत दिन पगै।
ए चडउष्ह मल वजित होय,
निमेल दान कहावै सोय ॥१४५
अध-दाक और फल वणेन -
आहार दान दीजे शुभ पोष,
होय ऋट्धि पुनि छोटे दोष ।
भव भव सुख मिले अति घन,
निर्मल ठेन सुभग द्युति बनं ॥ १४६
ज्ञान दान दीजं शुभ सौर,
उक्तम मति होय जातैं सार ।
केवलं ज्ञान लहै जग पूजा,
पुनि सो सिद्ध होय पद दूजा ॥१४७
আনি বাল ইঘ জী পানী,
नीरोग देह सो पावहि प्राणी ।
दीरघ आयु मिल शुभ काय,
कीरति है तिहूं जग में छाय ॥४८
मभय दान सब जीवनि देय,
जते इन्द्र चक्री पदलेय।
बहुत भोग भगतं सुख पाय,
पुनि सौ होय मुकति पति राय ॥१४९
हकर नौरा बांदर वाय,
कुरजी वए बहु दुखदाय।
दान भाव जो मन में भयो,
छिन में भोग भूमि पद लियो ॥१५०
दोहा--जो नर उत्तम भाष सौ, पात्र दान शुभ देय |
सो महिमा को गनि सकै, गणधर आपु कटेप ॥१५१
चौपाई--उत्तम पात्र त्याग फल जानि,
तद्धव मोक्ष होड सुख खानि ।
कं फल भोग भूमिमे लहै,
तीन प्ल्लकी मायु जु कटै ।१५२
तीन कोस देह ऊंचौ होय,
महा सुगध मल वर्जित सोय ।
देह दीप्ति दीसे प्रकाश,
चन्द्र सूये तहं करेन वास ॥१५३
ग्रीषम, वर्षा, शीतु न जहा,
साम्य कालं हक दीस तहां ।
ठाकुर दास भाव नहीं जोग,
एके समान भगतं सुख भोग ॥१५४
ईति भीति धिता नहीं शोक,
जशा, रुजा, भव दोष न लोक ।
क्रोध सोभ माया मव नही,
पाप पुण्यः नहीं जाने तहीं ॥६५४
दशविधि कल्पवृक्ष सुख वेध,
जुगल रूप धरि नहु पुख लेय ।
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