जैन विद्या का सांस्कृतिक अवदान | Jain Vidya Ka Sanskritik Avdan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
210
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)क्षण के लिए घामिक अनुष्ठान का अब न मानकर इसे खुली ह१। मे ले जाने के
लिए जैन समाण को मन से जौर कम से तैयार होना होगा । इसक। अर्थ है कि
प।ड्लिपियो के रूप मे जो अपार सम्पदा मदिरी में मात (ज। के लिए सुरक्षित है
और जिसकी वर्ष में एकाव यात्। वहुरी दुनिया के सामने हो जाती है उसे राष्ट्र
के अत्येक এবি छर1 अध्यवन और मचन के लिए सुयभ बचाथ। जाए । प।डु-
लिपियो के मदर के ५८ खोलने के लिए युथ-धुग के पुणज।री को त41९ हो जाना
चाहिए | पद ज॑न समाज की यह तैयारी काफो नही है । श्र4 के विनाश के जिस
५५ नौ < (तंक के क।<ण उसे इस ग्रथ-सपद। को उुरक्षित रखने को वाध्य होना
ण्डा उच्धक। कण न फेवल उनको विचण्ट करना था बल्कि जैनेतर समाज की
वह सनोवृत्ति भी थी जिसने कहा था. न भच्छेत् जेनमदिर। गत दोनो को ही
वी समझ के लिए अपने को तैयार करना हो | विश्वविद्यालय और विद्य| के
द्रत रे अति०छनो को भी यह सोचना हु।॥। कि साम्भ्रदाथिक होना एक बात है और
लम्जपायविशेष का सधुर्ण अध्ववनाथ जौर नि०्७ के साथ मध्यवच करना दूरी
बात है। यह दुर्भाग्व हैं कि यूरोपी4, अभेरिको या रूसी भाषा, साहित्व और
क्षमाण को जानने के लिए. भ1रतीय विश्वविद्यालयों के पाठ्यकंम में व्यवसूथ।
খাপ ই, लेकिन भारतीय भाषा, साहित्य व सस्क्ृति को विश्वविद्यालय स्तर एक
प्रवेश दिलाना दुण्कर कार्य हैं। और इस कार्य मे साअदाविकत। কী সসএ থপ ক্কা
হীন এহুপি किया जाता है] जत समाय नौर शैक्षणिक जगत् में समन््यय
मअनिवार्थ है। मचोवृतियों के इस भरत-मिनाप के १६ जिन कार्थो से जैन विचा
का अचार भौर भरना < सचमुच सफल हो सकेगा, उनमे से कतिपव निम्पकित हैं
१ श्रेणिक भाषा (वलामिकल लैंग्नेज ) मोर साहिप्व के साथ ५।४त ५।५।
गौर साहित्य का अध्ययन पाठ्यकम का अनिवार्य मेध नने]
२ आधुनिक भारतीय भाषा के प्राचीन रूप के पाठ्यक्रम के साथ
अपभ्रश जादि सम्नद्ध भाषा का अध्ययन अनिवार्यत नितीरित किया जाना
चं।हिए ।
३ छात्रवृ त्ियो का मधिकाधिक समायोजन किया जाति चाहिए जिर्न्दं
निश्चित এ से जैन और जैनेतर मे भेद न करके पढने वाले ७छ।ज्ो को योग्बतार
चुल।र पिया जाना ना हिएु ।
४ भक्त के अध्ययन एव जेंचुसधान को मानक स्तर अदान कर्ने के स
प्रत्येक अदेश के कम-से-कम एक विश्वविद्यालय में जैन विद्या के मण्यवन के लिए
आखन स्थापित किय। जाचा चाहिए जो पू्त स्थापित सस्कत जैयव। जाधुनिक
भारतीय भापानो के साथ सब<ू होकर कार्य कर ।
प्र ॥च्भ में स्तर की एकरूपता स्थापित करण के लिएु अ७ भा० स्तर पर
संभोण्ठी के माध्यम से विभिन्त श्ेणियो के लिए समान पादुयनाम का विधान करना
অপ विद्या : एक अचुणीलन ७
User Reviews
No Reviews | Add Yours...