सती - राजमती | Sati - Rajamati
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
204
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)११ কমা
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श्रेय को त्याग कर प्रेव को लेने से, हमारी कितनी मदान् হালি ই
और प्रेय पर छुमा कर श्रे फो अपनाने से कितना महान. खभ
र! धन, की-पुत्रादि प्रेयमें परकर संसार के छोग, श्रेय-मोक्ष-को
भूल रहे है । श्रेय को भूलने से ही, बेचारे प्राणियों का बध करके,
लोग उनका मांस भक्षण करते हैं, सदिरापान द्वारा मनुप्यत्व से
निकलकर पश्चुम्च में पहन है, और वैश्यागमनादि भरय॑कर पाप में प्रवृत्त
চাল তি म, संसार के छोगों को, प्रेय त्याग कर श्रेय अपनाने
का आददा-रदित उपदेश गा, ता वद उपदेश, पत्थर पर चरस हए
जट खी तरु लिरथकः दी छा । द्रदिप् म, ससर के सोयं के.
सामने, प्रेय को त्याग कर श्रेय को अपनाने का आदेश रखूँगा और
तभी मरा उपदेश, प्रभावास्पादक भी दे। सकेंगा ।
माता-पिता की बातें घुनते हुए भगवान ने, अपने हृदय में इस
प्रकार का संकरप क्रिया। माता-पिता की थात समाप्त होने पर,
भगवान ने उनसे कहा--आप छोंग धैये रखिये, अभी विवाद करने
के छिए इतना अनुरोध न करिय। अभी मेरेलिए, विवाह करने
का अवसर नहीं आया है । अवसर आने पर, सब कुछ हो जावेगा ।
भगवान का यद्र उत्तर सुनकर माता-पिता, अधिक कद न कह
सक | उनकर द्व मं यक्छिचित्त आशा का संचारः हुआ आर वे,
उत्कण्ठाययूवंक उस दिन की प्रतीक्षा करने छगे, जिस दिन भगवान `
फा विवाद धोना हुआ देख सके ।
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