समानान्तर | Samanantar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
143
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)| ११ |
अगर सुना कि वह् वहो गयी है, तो टॉगं तोड़ दें गा और चल्ला
गया ।
शास को घर आया, तो पत्तों द्वार पर ही मिल गयी,
জী मरा ही इन्तजार कर रहीं थी। चेहरे पर नजर पड़ते ही
बोल उठी--तुम्दारे घर तो मर जाऊँ, तो खबर भी नदे
पाऊं। ओर तो कुछ तुमसे पाने को रहा, अब दुनियाँ भर
के लोग घर चढ़कर अपमान भी कर जाने लगे ।
आाज जाने किसका मुंह देख कर जगा था। सुबह से
फजीहत-ही-फजीहत थी । खन्ना साहव से कहा-पुनी, देर मे
थक गया, वहाँ भी ल्ञानत-मलामत |
अब यहाँ जाने कया हुआ । मैंने पूछा--क््यों, यहाँ कया
हुआ ?
--यहाँ जो न होना था, सो हुआ। खन्ना साहब खुद
दरवाजे पर आकर जो मुंह में आया, कह गय । गरीब की
बीवी सबकी भोजाई !
““खन्ना साहब अकारण क्यों कह বাত?
লী तो वे जाने मगर सव्र कुछ कह गय ओर
बहाना यह् लगाया कि नील्लम क्यातो उनको चुनी की सोने
की बाली चुरा लायी है |
--नीलम चुरा लायी ह !?
“नहीं-नहीं, आज नीलम को मैंने दरवाजे से बाहर पॉब
भी नहीं रखने दिया !
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