नवधा भक्ति | Navadha Bhkti

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Navadha Bhkti  by जयदयाल गोयन्दका - Jaydayal Goyandka

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नवधा भक्ति श्छ है । किन्तु ये सब क्रियाएँ नामके दस अपराधोंकों बचाते हुएक ० दम्भरहित एवं जुद्ध मावनासे खाभाविक होनी चाहिये । | ( ... उपयुक्त कोतन-मक्तिको प्राप्त करके सबको भगवानूमें अनन्य प्रे होकर उप्तकी प्राति हो जाय, इस उद्देश्से संसासमें इसका प्रचार करना, यह इसका प्रयोजन है | ... कीतन-भक्ति भी ईश्वर एवं महापुरुषोंकी कृपासे ही प्र होती ` । है | इसलिये इस विषयमें उनकी कृपा ही हेतु है, क्‍योंकि भग नूके ` भक्तोके द्वारा भगवानके प्रेम, ग्रभात्र, तत्व और रहस्यकी बारीक सुननेसे एवं शाद्लौको पषनेसे भगवानमें श्रद्वा होती है ओर तव मनुष्व ` (8 उपर्युक्त भक्तिको प्रात कर सकता है জন: भगवान्‌ और उनके भक्तों- ২. की दया प्राप्त करनेके ढिये उनकी आज्ञाका पावन करना चाहिये ` ৭ 0 ই प्रकारकी केवढ कीर्तन-भक्तिसे मी मलुष्य परमात्ाकी .. दयासे उसमें अनन्य श्रेम करके उसे प्राप्त कर सकता है | गीते मगवानूने कहाहै--- कक # सन्निन्दासति नामवेमवकथा ओशेशयोमेंद्घी ` रश्रद्धा श्रुतिशच्रदेरिकगियं नाज्नयर्थवादभ्रमः } ` नामास्तीति निषिद्धवृत्तिविहितत्यागो हि. धर्मान्तरे साम्यं नाम्नि जपे शिवस्य च हरेर्नामापराधा दश || या हम सत्पुरुषोंकी निन्‍्दा; अश्रद्धाहुओंमें नामकी महिमा कहना; विष्ण और 1.8, शिवमें भेदबुद्धि, वेद, शास्त्र और गुरुकी वाणी में अविश्वास, हरिनामर्में अर्थाद- | . का श्रम अर्थात्‌ केवल स्तुतिमात्र है ऐसी मान्यता, नामके बरसे विहवितका আয়...




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