सतमी के बच्चे | Satmi Ke Bache(1944)

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Satmi Ke Bache(1944) by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२-- डीह बाबा ६ वैगेः--की करसमखा रखीथी। ब्राह्मणों का फ़तवा मिकला--बड़ी जातिवाले न सूअर पाले, न खावे | भरों ने कह्य.....कल तक तो इनके भी पुरखा सूझर के मांस का भोग लगाते थे, श्राज यह नई बात क्यों पास के मठ के बौद्ध-भन्नुकों की सम्मति अपने अनुकूल पाकर उनकी घारणा और भी पक्की हो जाती थी। उन्हें कया मालूम था कि, एक दिन उनकी सन्तान को इन्हीं ब्राह्मण-न्यायाधीशों से पाला पड़ेगा और उस समय कोई भिल्ल उनकी दिमायत करने के क्वण नदीं बच रहेगा ৫ काशीपति जयचन्द्‌ तुर्कोः से युद्ध करते मारे गये । उनके पुतन हरिश्चन्द्र कितने ही वर्षो तक श्रपने राञ्यके पूर्वीय भाग पर शान करते रहे | पश्चिम से तुक आगे बढ़ते श्रा रहे थे; और, तेरहवों सदी के समाप्त होने से बहुत पहले ही, पूब भी तुर्कों' के हाथ में चला गया। कनैला के भर सामन्त निश्चैंध ही बीर थे; परन्तु वे संमझदार न थे | कई बार छोटी-छोटी सैनिक कडि कौ हरा देने से उनका मन बढ़ गया था। आखिर एक बड़ी तुक़सेना ने चढ़ाई की। पहले की लड़ाइयों के कारण उनकी संख्या बहुत कम हो गई थी, तो भी भर-सैनिकों ने अपने प्राणों की बाजी लगाकर मुकाबला किया। वह एक-एक कर थयुद्ध-क्षेत्र में काम आये। उनके कोट पर तुक्कीं फ्रौजी चौकी बैठा दी गई। उनके फौजी सरदार ने हुक्म दिया. सभी मुसलमान द्वो जायें, नहीं तो कत्ल कर दिये ज्ञायँगे। चूड़ीवाले पहले तैयार हुए। दर्कियों और घुनियों ने भी कुछ आगगा-पीछा कर अपनी स्वीकृति दे दी । दूखरी जातिवालो मे सेकु घर छोड़कर माग गये, कुछुं अपने विश्वास के लिए बलिदान हुए; और कितनों ने इस्लाम- धर्म को अपनाकर अपनी प्राण-रक्षा की | तुक-फ़ौज ने अनार्थ मर-स्नी- बच्छों पर भी अपनी तलवार श्राज्ञमाई; लेकिन पीके उसे श्रपनी हृदय- हीनता पर लज्जा श्राह | र,




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