भारतीय मूर्ति - कला | Bharatiy Murti - Kala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारतीय মৃিশ্তা आदि उपादानों वो--उने स्वभाव के यनुपरार--गदृ, सोदष्, उभारर, क्षेरश्ट१, परद्र, धाय सेवा यौजार्‌ से रतिया) र्या फरक थाना दयापे ( धर्फोद्‌ लो श्रषिका तिप उपादान फ प्रवतत टो पूर्मं शिप्त प्रक्रिया में जे खिला दो), उतत्त को हुई আছরি को ঘা शतेष! छिन्द चान गृविंका शर्य मारे मों इतना (कुत्रित यौ णया दैद्धिम रये एश्मा्र पूजा ছা তত মান ইউ टै, तो भी यदो तण চি उषो पूता करते ६, उपप पूजा नदीं । परन्तु दल्तुतः मूर्ति का उद्देश्य श्सस्े कह्दों व्यापक है, गैसा कि हम भागे देखेंगे । प्रागैतिद्वासिक फाल; मोहनजोदड़ो, पैदिफकाल [६* पू« १«वथीं ११वीं सदस्तान्दी से श्खरी सद्बप्ताब्दी तक] ० 8२, मानवन्खम्यता छा पिाघकम, ज आयः दरद हजार षं पू षै धा प्के भी पहले चै चलता दै, इ प्रदा मिलता दै-- १. प्रारभिफ अस्तर-युग) जिम मतष्य पवस नगद पत्पर के औजार और हथियार काम में लाता था | १--चारों ओर से गढ़कर । २--द्वाथ से उपकरण को, जहाँ जैसी आवश्यकता हो, ऊँचा उदर्‌ दा नीचे दवाकर आकृति उत्तन्‍न करना | जः




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