भारतीय इतिहास की रूपरेखा | Bharatiy Itihas Ki Ruparekha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) स्वार्थ श्रौर उपस्थित शक्तियो की तरफ़ से, जिन की सेवा में स्मिथ महा- शय की विद्वत्ता जुती हृ हे, राजनैतिक प्रचार करने के कारण ধলা हुआ है ।*' `क ओर दोष हैं जो कि ल्लेखक की समाजशाखत्र इतिहासविज्ञान और तुलनात्मक राजनीति विषयक ( श्रान्त ) धारणाओं के कारण हैं । ' एक ऐतिहासिक अर्थात्‌ घटनाओं के एक व्याख्याकार के रूप में लेखक की कमजोरी को हर कोई' * ` ्रनुभव करेगा ।”” इत्यादि । इस के बावजूद प्रो सरकार ने स्वीकार किया कि स्मिथ की रचना बड़ी कीमती है । उन्हों ने समूचे ग्रन्थ की आलोचना की; दूसरे कई विद्वानों को उस के विशेष पहलुश्रा से वास्ता पड़ा | स्मिथ ने बड़े हठ के साथ अपने अन्थ में लिखा है कि “भारतवप का देसी कानून खेती की भूमि को सदा राजकीय सम्पत्ति मानता रहा है ।”? इस पर श्रीयत जायसवाल को लिखना पड़ा है--“भारतवर्ष का देशी कानून ` टीक इस से उलटा दै 1*“'यह उचित नदीं है कि जनसाधारण मे चलने वाली पाठ्य पुस्तकों में ऐसा पक्तपातपूर्ण प्रमाणहीन मत ऐसे हठ के साथ कहा जाय, औरं कहा जाय उस विषय पर हुए तमाम प्रामा- णिक विवाद की पूरी उपेक्षा कर के |”? भारतवर्ष की स्वाभाविक अवस्था सदा अराजकता की रही है, यह बात मौक-ब-मौके कहने से तथा प्राचीन इतिहास के इस तजरबे से भविष्य के विषय म उपदेश देने से स्मिथ कमी नहीं चूकते । शायद उन का ईमानदारी से यही विश्वास रहा हो । प्रो° सरकारर श्रौर डा० रमेश मजूमदार दोनों को इस का प्रतिवाद करना पड़ा है । १० र!० भाग २ ত্র १८१। रपोलिटिकल इन्स्टीख्य शुन्स एंड थियरीज आद दि हिन्दूज़ ( हिन्दुओं को राजनेतिक संस्थायें और स्थाप नायें ), लाइपज़िंग ( जमनी ), १९२२, ४० २४। 3ज० बि० ओ० रि० सो० १९२३, ४० ३२४-२५।




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