रवीन्द्र - साहित्य भाग - 11 | Ravindra - Sahitya Bhag - 11
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
132
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about धन्यकुमार जैन 'सुधेश '-Dhanyakumar Jain 'Sudhesh'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)केच---
देवयानी--
कच -
देवयानी--
ची
अभिशाप-अस्त विदा : कान्य
भूलना न गर्वमें ।
सुधासे बढ सुवामय
दुग्ध उसका है। होता दशेनसे पापक्षय ।
मातृ-रूपा शाम्ति-मूति पयस्विनी शुध्रकरान्ति 1
उसकी की सेवा मेंने त्याग छुवा तृष्णा श्रान्ति ।
गहन वचरमोर्मे शस्य - द्याम লীলধিন্রলী লীহ
फिरता रद्दा हूँ सग उसके में घर धीर
अनुदिन । निम्न तट - भूमिपर परिव्याप्त
इरित मृदुल स्निग्ब तृणराशि अपर्याप्त
चरती थी यथातृप्ति, फिर अलसा हुई
चलती थी मन्द्-मन्द् नव॒ छवि छाई हुईं,
और किसी तरु तले छया देख सुखकर
करतो रोमन्थ শীত जाती हरी दूबपर ?
सक्ृतज्ञ बडी - घड़ी आँखें निज खोल बह
स्नेहवश मेरी ओर देख लेती रद्द - रद्द,
अपनी कृतज्ञतासे पूर्ण शान्त दृष्टि द्वारा
वात्सल्यसे चाटती थी मानो मेरा तन सारा।
स्मरण रहेगी वेह दृष्टि स्निम्ध अविचल
चिकनी सुपुष्ट चुश्र श्रौ देह समुज्ज्वल ।
क्लऋल-चती रेणुमतीको न भृ जाना)
भूल जाऊँगा मेँ उसे, भला यद कैसे साना
कितने दी कुसुमित कुल - पुल्ल पार कर
आनन्दित मधुर ग्येमे कल -गान भर
वदती है यहाँ खेवा -पगी आसवधू सम
क्षिप्रगत्ति युमन्रता प्रवास - रूगिनी सम।
हाय चन्धु, यहाँके प्रवास-कालमें क्या, कहो,
ऐसी भी तुम्दारोी कोई सदचरी रदो, अदौ,
User Reviews
No Reviews | Add Yours...