रेवती दान समालोचना | Revati Daan Samalochana
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
112
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)॥ ॐ अर ॥ `
ই रक्त (> এ
शकती-दाक-समालक्तोचनाए
.-( हिन्दी साषान्तर )
मंगलांचरणं
{जेस সি के प्रारंभ करने की इच्छा की है उसकी सर्माह्त के लिए
दष्ट হন জী नमस्कार रूप मंगलाचरण करते हँ---
^ , संसार-समुद्र के पार पर्हुचे हए महावीर को नमस्कार करके
रेवती. द्वारा दिए हुए दान के विपय सें वास्तविकता का विचार
फिया जाता है ॥१॥
, उप पद् विंभयित से कारक विभक्ति अधिक वशवती होती है, अतः
थहाँ 'महाचीरम' पद में द्वितोया कारंक विमक्षित का प्रेयोग किया गया है ।
देष तो महावीर के- अतिरिक्त भौर भो हैं किन्तु मद्दावीर ही
चरामान शासन के स्वामी हैं और प्रकृत निबंध-का संबंध उन्हीं से है,
इसलिए संगलाचरण में उन्हीं का अहण किया गया है । ,
, युद्ध के प्रिजेताको वोर कते हैं किन्तु कर्म-युद्धू में विजय पाने वाले
षो महावीरं कहते हई 1 अर्थात् वीरों में भी जो सहान् पीर हो सो महा:
चीर 1 महावीर पंद से यहाँ अतुरू पराक्रम दिखकाने वाके वधमान स्वामी
का अथं लिया गया है ।
वर्धमान ने कहाँ अतुल “परोक्रम दिखलाया है ? इसका समाधान
करने के लिप कहते हैं--भन्न जर्थात् संसार, यही .संसार जर्गाघ होने फे
कारण मानों समुद्र है; उसके पार अर्थात् अन्त तक जो जा पहुंचे वह
भवपायोदपिपारग' -कषटराता है । मतलब यह है कि चधमभान स्वामी
ने भोक्ष:प्राप्त करने में अतुऊ पराक्रम दिखछाया है। * ` ` “^
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