श्री सूरदास का द्रष्टिकूट | Shri Sur Das Ka Drishtikuti

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Shri Sur Das Ka Drishtikuti by श्री सरदार कवि - Shree Sardar Kavi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नम मा डे ष्ञ अघहर एक सकर सारग ते सहज सम्हारन लाग। अन्तरिक्ष श्रीबन्घु एक को चाखत अति अलुराग ॥ भषणहित परनाम छोट बढ़ दोहन को कर राखी । सरजप्रमाफार चल गड को करत शत्राशवसाखी ॥७॥। भषण अलड्वार पर नाम के हेतु छोट बड़ कहे ज्येष्ठा कनिष्टा दोहुन को बनाइ गेह को चलें शिव शत्रु काम को साक्षी देके इहां _ प्रेमबाशि पसारत यातें पर नाम अलड्ार अझरु वेणी बिवरन में कनिष्ठा अघर चमेत में ज्येष्ठा ताकों लक्षण-- दो ०-बणनीय होके वरण) करत क्रिया पर नाम । अधिक न्यन अरनेह ते) ज्येप्ठर कनिष्टा बाम ॥ ७3 ॥। दिनपति चले थों कहें जात । घराघरनघररिष तन लीने कहां. उदाघेसुत बात ॥ लबउलदोदोजाउँ * तिहारी ताको.. सारंगनेन । तम बिन नन्दनंदन बजम्बण होत न नेको चैन ॥ मुरली मघुर बजावहू मुख ते रुख जनि अनते फेरो । हा सरजप्रम उल्लेख सबन को हो परपातना हरा ॥ ८ ॥ . ढक ऊड़ा की हि हें दिनपतिमित्र ! कहां जात हो धरा एथ्वी घरन शेष घर शिव रिपु काम तेसो तन लेके उदघिसुत सुधा वॉलवाली सब उलटे ते बल बलजाईं हो हे सारंग कमलनयन चित मुरली बजावहु रुख अनत जिन फेरो यहि में उल्लेख गलझार परकीया नायिका है ताकों लक्षण-- भरम्परमममररवसममर नस लए कक पफकशलील' ननकासललणा न लललातासजणए एड ।दनपात सूय, सूय का नाम मन |




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