जैन साहित्य का बृहद इतिहास भाग 3 | Jain Sahitya Ka Brihad Itihas Bhag - III

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आस्ताविक ९ उत्तराध्ययननियुक्ति : इसमे उत्तर, अध्ययन, श्रुत, स्कन्ध, संयोग, गकि, आकौणं, परीपह, एकक, चतुष्क, अग, संयम, प्र माद, सस्कृत, करण, उरभ्र, कपिल, नमि, वहु, श्ुत, पूजा, प्रवचन, साम, मोक्ष, चरण, विधि, मरण, भादि पदो की निश्नेपपूर्वक व्यास्या की गई है। यत्नन्तन अनेक दिक्षाप्रद कथानक भी सकलित किये गये हैं। अग को नियुक्ति में गधाग, औषधाग, मद्याग, आतोद्याग, शरीराग और युद्धाग का भेद-प्रमेदपर्वक विवेचन किया गया है। मरण की व्यारुपा में सत्रह अकार की मृत्यु का उन्लेख किया गया है । आचारांगनियुक्ति * इस नियुवित में आचार, वर्ण, वर्णान्तर, चरण, शास्त्र, परिज्ञा, मना, दिक्‌, पृथ्वो, वघ, अप्‌, तेजम्‌, वनस्पति, घस, षायु, लोक, विजय, कमं, জীব, उष्ण, सम्यक्त, सार, चर, धूत--विधूनन, विभौक्ष, उपधान, श्रुत, अग्र आदि शब्दो का व्याख्यान करियागयाह। प्रारभ में आचाराग प्रथम अग क्यों हैं एव इसका परिमाण क्या है, इस परं प्रकाश डाला गया है । मन्न मे नियु विकार ने पचम चूलिका निशोय का किसो प्रकार से विवेचन न करते हुए केवल इतना ही निर्देश किया है कि इसकी नियुक्ति मैं फिर करूँगा । वर्ण और वर्णान्तर का 'प्रतिपादन करते हुए आचाय॑ ने सात वर्णों एवं नौ वर्णान्तरो का उल्लेख किया है। एक मनुष्य जाति के सात वर्ण ये हैं. १. क्षत्रिय, २ शूद्र, ३ वैद्य, ४ त्राह्मण, ५ सकरक्षत्रिय, ६ सकरवेद्य, ७ सकरशूद्र । सकरब्राह्मण नाम का न्को वणं नही है । नौ वर्णान्तर इस प्रकार हैं* १ अबष्ठ, २ उग्र, ३ निषाद, ४ अयोगव, ५ मागघ, ६ सूत, ७, क्षत्त, ८ विदेह, ९. चाण्डाल । सूत्रकृतागनियु विति : इसमें आचाय॑ ने सूत्रकृताग दान्द का विवेचन करते हए गाथा, षोडश, पुरुष, विभक्ति, समाधि, मार्ग, ग्रहण, पुण्डरीक, आहार, प्रत्याख्यान, सूत्र, माद्र, छम्‌ जादि पदो का निक्ेपपूवंक व्याख्यान किया है। एक गाथा ( ११९ ) में निम्नोक्त ३६३ मतान्तरों का उल्लेख किया है १८० प्रकार के “क्रियावादी, ८४ प्रकार के अक्रियावादो, ६७ प्रकार के अज्ञानवादी और २२ अकार के वंनयिक । दशाश्रुतस्कन्धनियु क्ति : प्रस्तुत नियुक्ति के प्रारभ में नियुक्तिकार आचार्य भद्रबाहु ने प्राचीन -गोत्रीय, चरम सकलशरुतज्ञानी तथा दगाभरुतस्कन्व, वृहतकत्प ओौर व्यवहार सूत्र




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