गल्प - मंजरी | Gulf Manjari
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29 MB
कुल पष्ठ :
300
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बूढ़ी काकी &
बोली- ऐसे पेट में आग लगे, पेट या भाड़ ! कोठी में
बैठते क्या दम घुटता था ? अभी मेहमानों ने नहीं खाया,
भगवान का भोग नहीं लगा, तब तक धे न हो सका ?
आकर छाती पर सवार हो गई । जल जाय ऐसी जीभ ।
दिन भर खाती न होतीं तो न जाने किसकी हांडी में मुंह
डालतों £ गांव देखगा तो कहेगा, बुढ़िया भर पेट खाने को
नहीं पाती, तभी तो इस तरह সহ নাহ फिरती है। डाइन न
मरे न मांचा छोड़े । नाम बेचने पर लगी है। नाक कटवाकर
दम लेगी। इतना ठूंसती है न जाने कहां भस्म हो जाता है।
लो ! भला चाहती दो तो जाकर कोटरी में बेठो, जब घर के
लोग खाने लगेंगे तब तुम्हें भी मिलेगा। ठम कोई देवी नहीं
दो चाहे किसी के सेह में पानी न जाए परन्तु तुम्हारी पूजा
पहले हो जाए ।” बूढ़ी काकी ने सिर न उठाया, न रोई, न
बोलीं। चुपचाप रेगती हुई अपनी कोठरी में चली गई ।
आधात ऐसा कठोर था कि हृदय और मस्तिष्क की सम्पूणं
शक्तियां, सम्पूणं विचार और सम्पूण भार उसी ओर
आकर्षित हो गए थे। नदी में जब करार का कोई बृहद् खंड कट
कर गिरता है तो आख-पास का जलसमूह चारों ओर से
उसी स्थान को पूरा करने के लिये दौड़ता है।
(३)
भोजन तैयार हो गया । आंगन में पत्तत्न पड़ गए। मेहमान
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