हिंदी श्रीभाष्य भाग 10 | Hindii Shriibhaashhya Vol.10

Book Image : हिंदी श्रीभाष्य भाग 10 - Hindii Shriibhaashhya Vol.10

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

राम नारायण आचार्य - Ram Narayan Acharya

No Information available about राम नारायण आचार्य - Ram Narayan Acharya

Add Infomation AboutRam Narayan Acharya

रामानुजाचार्य यतीन्द्र - Ramanujacharya Yateendra

No Information available about रामानुजाचार्य यतीन्द्र - Ramanujacharya Yateendra

Add Infomation AboutRamanujacharya Yateendra

शिवप्रसाद द्विवेदी - Shiv Prasad Dwivedi

No Information available about शिवप्रसाद द्विवेदी - Shiv Prasad Dwivedi

Add Infomation AboutShiv Prasad Dwivedi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
(ड ) है श्रत्व वरह शअ्रग्नि का वाचक है | तथा वैश्वानर विद्या के प्रकरण मेँ वैश्वानर को प्राणाहृतियों के श्राघार ख्पसे हृदय के भीतर विद्यमान गाहंपत्यादि प्रर्नित्रय के रूप में बर्णन ( हृदय गाहंपयः ) इत्यादि श्वति के द्वारा किया गया है, भप्रतएव उसे अग्नि अथवा जाठराग्नि का ही वायक मानना चाहिये परमात्मक हीं तो यह कहना इस लिए युक्त संगत नहीं है कि उपयुक्त श्रतियों में वेश्वानर परमात्मा का प्रस्नि शरीरक तवा जाठरागिनि शरीरक रूप से उपासना करने के लिए बत्लाबा गया है क्‍यों कि कहु उनका ब्रन्तर्या्री है। इस भ्रथं का पता इसलिए चलता है कि केवल प्रगिति श्रथवा जाठराग्नि तलौक्य सरीरकनहींहो सक्ते ই । ओर वश्वानर को छा लोक्ष से लेकर प्रथिवीलोक पर्यन्त शरीर वाला बतलामा गया है । (४) अतएव न देवता भूतठच 4 अर्थात्‌ वेश्वानर- शब्द को अग्नि का तथा श्रमिनि के अधिष्ठ तू देवता का भी बाचक्र इसलिए नहीं माना जा सकता है कि उसे / वेश्वानर को ) त्रेलोक्य शरीरक तथा निरुषाधिक पुरुष शब्द से श्रुति में निर्दिष्ट किया गया है। (५३ 'साक्षा- दप्यविरोधं जैमिनि: ।” महर्षि जेमिनि मानते हैं कि जिस तरह सम्पूर्ण नरों ( नित्य पदार्थो) का नेता होने के कारण वैश्वानर शब्द परमात्मा मुख्यावृ-्या वाचक है उसी प्रकार. प्रग्रनयनादि गुणों युक्त होने के कारण अग्नि शब्द भरी साक्ष त्‌ परमात्मा का 23 | 1 (और 7 व 7 हू ने শি এ न न €




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now