जैन बौध्द तत्त्वज्ञान भाग 2 | jain Boudh Tattvagyan Vol 2
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
289
श्रेणी :
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No Information available about ब्रह्मचारी सीतलप्रसाद जी - Brahmchari Seetalprasad Ji
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१४)
आपने पढ़ाकर वकील बना लिया है, और जब বনী দা নাজ
करते हैं । भापने अपनी माताजीकी आज्ञानुसार करीब १५, १६
हजारकी ऊागतसे एक सुन्दर और विशाक् मकान भी रहनेके ढिये
चना किया है | रोहत निवासी का० सनु रसिंहजीकी सुपुत्रीके साथ
श्र° शान्तिप्रसादजीका भी विवाह होगया है । भव धीमतीजीकी
माज्ञानुमार उनके दोनों पुत्र तथा उनकी জি काये सचान करती
हुई मापसमें बड़े प्रेमसे रहती हैं । श्री० महावीरप्रसादजीके मात्र
तौन कन्यायें हैं, जिनमें बढ़ी कन्या (31जदुकारीदेवी) भाठवी कक्षा
टत्तीण इरनेके अतिरिक्त इस वर्ष पञ्ञ|बकी हिन्दीरत्न परीक्षार्में भी
उत्तीणता प्राप्त कर चुकी हैं छोरी कन्या पांचा कक्षे पढ़ रही
है, तीमरी भभी छोटी हैं ।
श्रीमतीजीकी एक वितवा नगद श्रीमती दिछमरीदेवी ( पति-
देवकी बढ़िन ) हैं, जो कि भापके पास ही रहती हैं । श्रोमतीनी
१०-१२ वधसे चातुर्मामक दिनोमिं एड्वार ही भोजन करती हैं
किन्तु पिछके डेढ़ घालसे तो हमेशा ही एक दफा भोजन छरती हैं,
इसके अतिरिक्त बेला, तेछा आदि प्रध्ारके त्रत उपवास समय२ पर
करती रहती हैं। भापह्ता हरसमय घमेध्यानमें चित्त रहता है। मैन-
बद्री मूगगद्रीको छोड आने अपनी ननदके साथ समस्त जेन
तीथौंकी यात्रा कीहुईं है । श्री सम्मेदशिख्/जीकी यात्रा तो आपने
दोबार की है। गतबष आपकी जआज्ञानुसार ही आपके पुत्र बा०
महावीरप्रधादजीने श्री० ब्र० सीतलप्रसादजी छा हिसारमें चातुर्मापत
करवाया था, जिससे सभी माहयोंक्ो बड़ा घमेछाम हुमा ।
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