समाज गौरव | Samaj Gourav

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Samaj Gourav  by चिरंजीलाल जी बड्जाते - Chiranjilal Jee Badjateजमनालाल जैन - Jamnalal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नर ) न्य् '४७. जीवन श्रसंस्कृत है-श्रर्थात्‌ एक बार टूट जाने के बाद फिर नहीं जुइता, शत: एक सण प्रमाद न करो । ४८, संसारी मनुष्य श्रपने प्रिय कुट्टम्बियों के लिए. बुरे-से-बुरे पाप-कर्म कर डालता है, पर जब उनके दुष्फल मोगने का समय श्राता है, तब श्रकेला दी दुश्ख भोगता है, कोई भी भाई-बन्धु उसका दुःख बैँटानेवाला--सद्दायता पहुँचानेवाला नहीं होता । ह ४६. संसार मैं जो कुछ घन, जन श्रादि पदार्थ हैं, उन सबको पाशरूप जान- कर मुमुन्लु बडी सावधानी के साथ फूँक-फूँककर पॉव रखे ।. जब तक शरीर सशक्त , तब तक उसका उपयोग झधिक-से-श्रधघिक संयम-घर्म की साधना के लिए, कर लेना चाहिए । बाद में जब वह बिलकुल ही श्रशक्त हो जाय, तब बिना किसी मोह-ममता के मिट्टी के ठेले के समान उसका व्याग कर देना चाहिए | ५.०. श्रात्म-विवेक भटपट प्राप्त नहीं हो जाता-इसके लिए, तो भारी साधना की श्रावश्यकता है । महर्षि जनों को बहुत पहले से ही संयम-पथ पर दृद्ता के साथ खड़े होकर, काम-भोगों का परित्याग कर, समतापूर्वक संसार की वास्तविकता को समभकर,; श्रपनी श्रात्मा की पापों से रक्षा करते हुए सर्वदा श्रप्रमादी रूप से बिचरना चाहिए । ५.१. जो मनुष्य संस्कारदीन हैं, तुच्छ हैं, निन्दा करनेवाले हैं, राग-द्ेष से युक्त हैं, वे सब श्रधर्माचरणवाले हैं । इस प्रकार विचारपूर्वक दुर्गुंणों से घृणा करता हुआ मुमु्ले शरीर-नाश पय॑न्त एकमाज सद्युणों की ही कामना करता रहे । ५.२. जैसे श्रोस की बूँद कुशा की नोक पर थोडी देर तक ही ठह्टरी रहती है, उसी तरह मनुष्यों का जीवन भी बहुत श्रल्प है-शीघर ही नाश हो जानेवाला है | इसलिए, हे गौतम ! क्षणमात्र भी प्रमाद न कर । ५३. श्रनेक प्रकार के विश्नों से युक्त श्रत्यन्त श्रव्प श्रायुवाले इस मानव- जीवन मैं पूर्वसंचित कर्मों की धूल को पूरी तरह भटक दे । इसलिए, हे गौतम ! क्षणमात्र भी प्रमाद न कर | ५४ दीर्घकाल के बाद भी प्राणियों को मनुष्य-जन्म का मिलना बड़ा दुलभ है, क्योंकि कृतक्मों के विपाक श्रत्यन्त प्रगाढ़ होते हैं। हे गौतम च्णमात्र भी प्रमाद न कर |




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