प्रज्ञा प्रदीप श्री पुष्कर मुनि | Pragya Pradeep Shri Pushkar Muni

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Pragya Pradeep Shri Pushkar Muni  by देवेन्द्र मुनि शास्त्री - Devendra Muni Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१ साक्षात्कार : एक यूग पुरुष का प्रत्येक युग मे कुछ ऐसे शिष्ट-विशिष्ट व्यक्तियों का जन्म होता रहा है जिन्टोने अपनो महानता, दिव्यता, ओौर भव्यता से जन-जन के अन्तर्मानस को अभिनव आलोक से आलोकित किया है । जो समाज की विकृति को नष्ट कर उसे संस्कृति की ओर बढने के लिए उत्प्रेरित करते रहे हैं। अपने युग के गले-सडे, जीणं-शीणं विचार व आचार मे अभिनव क्रान्ति का प्राण-पंचार करते रहे दै । उनका अध्यवसाय अत्यन्त तीव्रो हता ह जिससे ভ্যান ঘ শী सुगम बन जाता है, पथ के शूल भी फूल बन जाते हैं, विपत्ति भी सपत्ति बन जाती है और तूफान भी उनके अपूर्व साहस को देखकर लौट जाते है। मागं की सभी बाधाएँ उन्हे “हढ उत्साह प्रदान करती है और उलझन उनके लिए सुलझन बन जाती है, समस्या भी वरदान रूप होती है, उनमें एक साथ राम के समान संकल्प शक्ति, हनुमान के समान उत्साह, अंगद के समान इढता, महावीर के समान धेयं, बाहुबली के समान वीरता भौर अभयकुमार के समान दक्षता का प्रभाव हष्टिगोचर होता है । वह्‌ निन्दा ओर प्रशसाकी किचित्‌ मात्र भी चिन्ता न कर गजराज की तरह झूमता हुआ और शेर की तरह दहाडता हुआ अपने लक्ष्य की ओर निरन्तर बढता ही रहता है । वह्‌ मनस्वी युग-पुरुष अपने युग का प्रतिनिधि होता है । वह समाज का मुख भी है मौर मस्तिष्क भी । वह्‌ समाज के विकास व कल्याण के लिए स्वय अपने युग के अधविश्वासो, अन्धपरम्पराओ ओर भूढतापूणं रूढिवाद से संघर्ष करता हैं, जूझता है। जब तक उसके तन में प्राण-शक्ति है, मन में तेज है, विचारो मे उत्साह है और वाणी मे ओज है, तब तक वह विकट संकटो में गुलाब के फूल की तरह मुस्कराता रहता है, स्वकल्याण के साथ प्रकल्याण करता है 1 उसका सोचना, उसका बोलना अर उसका कार्य करना सभी मे जन-कल्याण की भावनाएं अंगडाद्या लेती रहती है 1 शिव- शंकर की तरह स्वय जहर के प्याले को पीकर समाज को सदा अमृत प्रदान




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