संस्कृति रा सुर | Sanskriti Ra Sur
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
174
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जीवंग री भंणकांर॑ ' के | दै.
` -वीणा री.खरावियां रा निसांण है, तानां वर ` तटस्थता रे तूटण रा
. सत्तांण है 1 ।
: आप नदी तो जरूर देखी द ला । जठा लग नदी दोन खड़कां रें
बीच मेँ पोतारी मरियादा में वेवे, उठा लग दुनिया नें निरमंल जल
पाव अर अलेखू जीवा जण री पालणा करं । पण जिण वखत आ पोत्रारीं
मरियादा नँ तोड़ नांखं, टाव तोड़ ने ववण लाग जावे, उण वखत कांई
हालत ह्व ? नतीजा ओईज निकल के जिकौ निरम् जलं जीवा
जूणं री पालणा करे, मानखा नें जीवण अरपे, वो इज जक जीवा जुणं
रे वास्तं क्रालरो सरूप वण জান । नदी में पूर आवण पसू नदी रों
नेह रस समतोल नीं रवं । वैर, ` विरोध, क्लेस अर माया-मोह् रे वसी-
भरत होय नैँ पोतारी समतुला गुमाय नांखं । आसक्ति रो रूप धारण करं
इण कारण दुनिया री जीवा जू ण वास्तं आफत रूप वण जावं । इणीजं
भात जे कोई भरत्यौ वटाज्डौ লহীহী ভালা ইল তত पोतारी तिरस
. बुझावण नें आवे पण आगे. नदी सफा सूखी मिल तो उण वटाउड़ा री
` किसीक हालत द्वं ? इसी नदी पण जीवाजुणरे कांईकांमरी?
भावारथ ओहै के जिण भांत नदी द्यो ढाचां रे वीच में एक सरीखी
वेवती थकी अलेखु' ` प्राणियां ; री जीवणदाता वण सकं, उणीज भांत
मांनखा री जीवण गंगा पण ताना अर तटस्थता रादोनूु किनारां
विचार . ववती रवेतो करई जीवां रे वास्तं जीवणदाता वण संक ।
नीं तर मोह अर .ममता.वधवा सू जीवण गंगां रो निरमल जल. पणं
'आफेत रो कारण वण जावे । अथवा वो जल सफा सूख इन जावं । इण
भांत तिरस बुभावण नें आयौड़ा व्टाऊ्डा रं वास्तं वा दख. रो कारण
वणं । ए दोनू हालतां नदी रं ञ्मू' जीवण रूपी नदी र वास्तं पण खरा
वारी है । भा वात एक दाखला सू साफह्वं जाएला.। . ४
मानिलोके एकमा है। उण रं एकाएक वेटौहै, जो उणनै घणौ
इज व्हालौ है । उणरं हिवडा में वेट रं वास्तं अथाग प्रेम है'। पण उणं
प्रेम रो समतोल किण भांत राखणौ चाहिजं गओ उण नं भांन नीं है।'उण
हालत में. उण रौ प्रेम नकांमो है। कारण के वा प्रेम अर मोह रा भेद नें नीं
` समभ 1 मकस, एँंदीपणा अर तटस्थता रो फरक नीं जांणं 1 वा पोतारा
वेदा नं घणा लाड कोड सू उद्धरं । छोकरौ नांजोगा কাল ক দত লা
उणनं नीं वरजे । वो चीरियां कर, वजार मे जायने पैसा .उडाव तास-
पण उण नें कांई नीं कवे । .इसी हालत में उणरो ओ प्रेम, प्रेमः नीं फणः
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