काव्यालोक | Kavyalok
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
40 MB
कुल पष्ठ :
420
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं रामदहिन मिश्र - Pt. Ramdahin Mishra
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १५ )
है और कोई सात्विक तथा आङ्गिक अनुभावो का भावक होता है
तब यह केसे कहा जाय कि काव्य की मार्मिक समारोचना की उपेक्ला
की गयी है ? जब हम इस सरस उक्ति को उपस्थित करते हैं कि
शब्द और अथ का जो अनिकंचनीय शोभाशाली सम्मेलन होता
है वदी साहित्य है । राब्दाथं का यह सम्मेलन वा विचित्र विन्यास
तभी संभव दो सकता है जब कि कवि अपनी प्रतिभा से जहाँ जो
शाब्द उपयुक्त हो वही रख कर अपनी रचना को रुचिकर बनाता दे
तब न तो हमको कला में अकुशल, दोली से अनभिज्ञ और अभिव्यञ्जना से
विमुख ही कहा जा सकता है और न हम केवल उपदेशक ही माने जा सकते हैं।
अब यह सहृदय विवेचकों पर ही निर्भर है कि हमारे प्राचीन आचार्य 'सहि-
तस्य भावः साहित्यम्? को ष्यन्ु प्रस्यय करके अनाना ही जानते थेया
साहित्य-कला के ममंक्त भीथे। हमारी उपेक्षादह्यी इन बातों को विस्रति कै
गर्भ में डाल रही है।
रही सत्ससाहित्य की सृष्टि की बात | हित--शभ, शिक्षा, उपदेश से युक्त
साहिस्य यदि ब्रह निरतिश्चय आनन्द प्रदान करने में भी समर्थ हो तो इसे
किसी ने असत्साहित्य नहीं कहा है बल्कि उसे सत्साहित्य होने का गौरव स्तव्रत
प्राप्त है । आचायों के मतानुसार हित साधना साहित्य का एक विशिष्ट प्रयोजन
भी है। अब तक वादों के बातूछ से विप्छुत होकर जिन्होंने काव्यरचना की है
उन्हें वह सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ है जो सदह्दित साहित्य को प्राप्त है। इस प्रकार
के, साकेत के संतुलन में, सत्साहित्य होने का सोभाग्य एक आध को ही अद्या-
वधि डपछब्ध हुआ है। स-हित के सम्बन्ध में विश्वास है कि इन महान् व्यक्तियों
के उद्धरणों से घेय और सन्तोष हो जाना चाहिये ।
तुलसी दास जी ने जहाँ स्वान्तःखुखांय कहकर काव्य का आत्मानन्द
ही उद्देश्य निर्दिष्ट किया है वहाँ--
१-कीरति भणिति भूति भलि स्ोई ।
सुरसरि सम सब कहँ दित होई ॥
9 वागृभावेको मवेत्कशित् कश्िदधुद्यभावकः ।
सातिवकैराह्ठिकैः कश्चिदनुभावैश्च भावकः । राजरोखर
विशेष देखना हो तो काव्यमीमांसा के चोये अध्याय का अन्तिम भाग देखिये ।
२ सादित्यमनयोः शोभाशालितां रति काप्यसौ ।
भन्यूनानतिरिक्तत्वमनोदारिण्यवस्थितिः ॥ ऊुन्तक
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