तुलसीदास के अनंतर हिंदी का राम साहित्य `` | Tulsi Ke Anantar Ka Hindi Ka Ram Sahitya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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के उदय और इस संप्रदाय के अनेक कवियों द्वारा ,राम संबंधी प्रभूतं रक्नाभौ का अस्तित्व इमपरे कुछ आलोचक स्वीकार करने लगे हैं के रामचंद्र शक्ल ने अपने हिन्दी साहित्य के इतिहास मैं चिस्कै दिष्य मैं अपनी अस्वीकृत प्रकट को है अभी कपर इसी प्रसंग मैं मैने बर्चित भी किमा है | यहराम ₹ঘিক संप्रदाय और उसका साहित्य क्गा है ९? इसके इतिहास और पताहित्य के विंवेचन कौ लेकर इधर दौ बड़े ग्रंथ डा० भगवती एषाद सिंह भौर डा भुवनेश्वर नाथ भिश्च माधव में रामभतित मैं रखिक संप्रदाय और रामभक्ति साहित्य मैं मधुर उपासना नाम से लिखे | लेखकों को पविद्वता उनमें निद्चित है और राम रसिक संप्रदाय सम्पूर्ण एतितृय विवेदन, साथ दी दाशनिक सिद्धान्तों का अनुशोलन इमं भा गया । डा° सिंद का ग्रंथ इततिदास का विवेचन अपिक प्रस्तुत करते हैं और पं० माधव के ग्रंथ में दाशनिक -सिडान्तौःका विवेचन अधिक है | हमकौ रपफिक संप्रदाय के आविर्भाव और स्वरूप के सम्बन्ध मैं इन ग्रैथों से पर्याप्त परिचय मिल जाता है | इम ग्रंथों मैं एक दौदा गरद है किये प्रशस्तिमत्र हौ अधिके हैं । राम-रसिक-भकक्‍तौं और उनकी साधना के गृुणगान की और लेखकों কী दृष्टि अधिक रही है, अतिरिक्त इसके कि ये इसके सही स्वरुप, सही उद्भव और सही परिष्याति की कस्तौटी करते, रसिक साहित्य मैं सौकिक जीवन कै स्मुस्नतकारी तथ्यों को श्ौज करते । इससे मे दौनों ग्रंथ रसिक वाडूणाॉ- मय की सामग्री हमारे सामने उपस्थित करते हैं, ठसके विवेचन के सही मुल्य क्न का इन ग्रंथों मैं निदर्शन ढूंढ़ुना व्यर्थ होगा । अपने इस पूर्व्गनह के कारण इम ग्रंथों के लेखकों ने, बात्मोकि रामाया, रध्वा, भवभूति के उत्तर राम- बरित, रामवबरित मानस आददि ग्रंथों मैं भी रसिक-सादित्प कौ खौज निकाला है जौ कैवल इसोलिए है कि रखिक साहित्य की परंपरा अत्यन्त पुरानी और अनादि है । डा० भगवती प्रसाद सिंह मे लिखा है कि इसके विकास सूत्रों ग. बरनयोकम चे यह स्पष्ट হী बाता € कि किसी काल विशि हैं किन्हों कारणों से इनका प्रवाह कौश भले दो पढ़ गया हौ किन्तु प्रौत कभी सूखता




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