जातक भाग ५ | Jaatak Part-5
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
35 MB
कुल पष्ठ :
601
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)र [ ५०१
मुगी ने भी भागकर जब मृगो मं अपने दोनों माइयों को नहीं देखा तो सोचा-
यह भय मेरे भाइयों के लिए ही उत्पन्न हुआ होगा। वह सूककर उनके पास मई ।
उसे आते देख बोधिसत्व ने पांचवीं गाथा कही-
गच्छ भीर पलाथस्सु, कट बद्धोस्मि आयसे,
गच्छ तुवं पि, मा कलि, जीवस्तन्ति तय सह् ॥५॥
. [हेभीर! जाभाग।मेलोहेके बंधनमंबंधाहं।तूमीजाः चका मत कर ।
वे तेरे साथ जीयथेंगे ॥५॥ |
इसके बारे में पूर्व प्रकार से ही तीन गाथायें हैं--
नाहं रोहन्त गच्छामि, हृदयं में अवकड्ठति,
न तं अहं जहिस्तामि, इव हेस्तामि जोवितं \६११
ते हि नून मरिस्सन्ति अन्धा अपरिनाधिक्रा,
गच्छ तुवंपि, मा कठि, जीविस्सम्ति तया सह् ।५७॥
নাই रोहन्त गच्छामि, हृदयं मे अवकड्ठति,
म तं बद्धं जहिस्सामि, इध हेस्सामि जीतितं ॥१८॥
उसने भी वैसे ही (भागना ) अस्वीकार किया मौर उसके बार्ई-ओर उसे
सान्त्वना देती हुई खडी हुई । दिकारी ने भी जब भृगो को भागते देखा भौर बंध
जाने की आवाज “सुनी तो समझ गया कि मृगराज बंध गया होगा। उस ने कांड
कसी और मृग को मारने का शस्त्र लेकर शीघ्रता से आन पहुंचा । बोधिसत्व ने
उसे आता देख नौंवीं गाथा कही---
अय॑ सो लुहको एति रुहरूपो सहाब॒ुधो,
सो नो वधिस्सति अज्ज उसुना सत्तियाम्रपि ॥९॥
| यह आयुध-सहित रुद्ररूप शिकारी चल्य आता है। वह आज हमें तीर से
भी, शक्ति से भी मारेगा ।९॥ |
उसे देखकर भी चित्त-मृग नहीं भागा। किन्तु सुतना अपने को संभाल न
सकने के कारण, मृत्यु से डरकर थोड़ी भागी । फिर यह सोच कि में दो भाइयों
को छोड़ कहाँ जाऊंगी, अपने प्राणों का मोह छोड़, मृत्य को सिर पर ले, आकर
भाई के बाई-ओर खड़ी हो गई। इस अर्थ को प्रकाशित करने के लिए दास्ता
ने दसवीं गाथा कही---
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