मेरी आत्म कहानी | Meri Aatm Kahani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मेरी आत्मकह्ानी १२ लगा | दस ही वर्ष की अवस्था में मेरा विवाह हो गया | इसके अनंतर अंगरेजी की पढ़ाई आरंभ हुई | मेरे पिता के मित्र हनुसान- प्रसाद थे, जा लेंगढ़े मास्टर के नाम से प्रसिद्ध थे। वे वेसलियन मिशन स्कूल में, जे नीचीबाग में था, पढ़ाते थे। वहाँ मेरी अगरेजी की शिक्षा आरंभ हुईं | थोड़े दिनों के अनंतर इन मास्टर साहब की मिश्नरी इंसपेक्टर से बिगड़ गई। उन्होंने स्कूल की नौकरी छोड दी और त्रह्मनाल में शिवनाथसिंह की चौरी के पास अपना स्कूल खेला । इद-गिदं के लड़के पढ़ने आने लगे और स्कूल चल निकला | कुछ कालु के उपरत यहाँ से हटकर स्कूल रानी- कुआँ पर गया ओर येहाँ पर उसका नाम ॒हुमान-सेमिनरी पड़ा । मास्टर हनुमानप्रसाद कुछ विशेष पढ़े-लिखे न थे, पर छोटे लड़कों के पढ़ाने'का उनका ढंग बहुत अच्छा था । यहीं से मेंने सन्‌ १८९० में एँग्लोवनॉक्यूलर'मिडिल परीक्षा पास की | बावू गदाधरसिंह मिजापुर में सिरिश्तेदार थे। उन्हें हिंदी से प्रेम था। कइ बँगला पुस्तकों का उन्होंने हिंदी में अनुवाद किया था। उन्होंने हिंदी-पुस्तकों का एक पुस्तकालय “आय-भाषा-पुस्तकालय' के. नाम से खोल रखा था । केवल दो आलमारियाँ पुस्तकों की थीं, पर नई पुस्तकों के खरीदने आदि का सब व्यय बाबू गदाधरसिंह अपनी जेब से देते थे। यह पुस्तकालय हनुमान-सेमिनरी में आया ओर इसी संबंध में बाबू गद्ाधरसिंह से मेरा परिचय हुआ। इस स्कूल में रामायण का नित्य पाठ होता था। यहीं मानो मेरे हिंदी-प्रेम की नींव रखी गई | बीच में लगभग एक महीने तक लंडन मिशन




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