मेरी आत्म कहानी | Meri Aatm Kahani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
28 MB
कुल पष्ठ :
289
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मेरी आत्मकह्ानी १२
लगा | दस ही वर्ष की अवस्था में मेरा विवाह हो गया | इसके
अनंतर अंगरेजी की पढ़ाई आरंभ हुई | मेरे पिता के मित्र हनुसान-
प्रसाद थे, जा लेंगढ़े मास्टर के नाम से प्रसिद्ध थे। वे वेसलियन
मिशन स्कूल में, जे नीचीबाग में था, पढ़ाते थे। वहाँ मेरी
अगरेजी की शिक्षा आरंभ हुईं | थोड़े दिनों के अनंतर इन मास्टर
साहब की मिश्नरी इंसपेक्टर से बिगड़ गई। उन्होंने स्कूल की
नौकरी छोड दी और त्रह्मनाल में शिवनाथसिंह की चौरी के पास
अपना स्कूल खेला । इद-गिदं के लड़के पढ़ने आने लगे और स्कूल
चल निकला | कुछ कालु के उपरत यहाँ से हटकर स्कूल रानी-
कुआँ पर गया ओर येहाँ पर उसका नाम ॒हुमान-सेमिनरी पड़ा ।
मास्टर हनुमानप्रसाद कुछ विशेष पढ़े-लिखे न थे, पर छोटे लड़कों
के पढ़ाने'का उनका ढंग बहुत अच्छा था । यहीं से मेंने सन् १८९०
में एँग्लोवनॉक्यूलर'मिडिल परीक्षा पास की |
बावू गदाधरसिंह मिजापुर में सिरिश्तेदार थे। उन्हें हिंदी से
प्रेम था। कइ बँगला पुस्तकों का उन्होंने हिंदी में अनुवाद किया था।
उन्होंने हिंदी-पुस्तकों का एक पुस्तकालय “आय-भाषा-पुस्तकालय' के.
नाम से खोल रखा था । केवल दो आलमारियाँ पुस्तकों की थीं,
पर नई पुस्तकों के खरीदने आदि का सब व्यय बाबू गदाधरसिंह
अपनी जेब से देते थे। यह पुस्तकालय हनुमान-सेमिनरी में आया
ओर इसी संबंध में बाबू गद्ाधरसिंह से मेरा परिचय हुआ। इस
स्कूल में रामायण का नित्य पाठ होता था। यहीं मानो मेरे हिंदी-प्रेम
की नींव रखी गई | बीच में लगभग एक महीने तक लंडन मिशन
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