महादेवभअीकी डायरी दुसरा भाग | Mahadevbhaiki Dayri Dusra Bhaag

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Book Image : महादेवभअीकी डायरी  दुसरा भाग - Mahadevbhaiki Dayri Dusra Bhaag

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यह्‌ भी सदज ही अनुमान होता है कि यह बात झिस तरह फैलने लगी है । जिस परसे अनेक तके-वितर्क झुठे | सी० पी० को बम्बणी भेजा हो, तो क्या यह भिस भावी विपत्तिमें दार द्ल्वार्खेका सयोग प्राप्त करनेके ल्झि हो सकता है? कया जिस बातकी चर्चा वाञिसरॉयकी कॉसिलमें हुओ होगी! जिन लोगोंने तैयारी तो बहुत कर रखी होगी, मगर यह कल्पना नहीं हो सकती कि वह्‌ क्या] बापू कहने लगे; “जिन लोगोंने १९ तारीखको मुझे छोड़ देनेका विचार कर रखा होगो, जिससे भुन पर कोओ बोझ न पढ़े 1? हँसते-हँसते बोले -- “ तो देखो, अपने राम तो १९ तारीखको चले, फिर रहना तुम दोनों अकेले |” * वतिं चो भिस तरह चल्ती रहती: मगर रामानेद লক্ষি 'साम्मदायिक निर्णयके 'वारेमें गहरे अध्ययनसे मरे हुओ जो छेख “मॉडर्न रिव्यू मे अयि रै, युन पढ़नेमें समय देना ज्यादा लाभदायक समझा गया। - -' झुस - पनका जबाब देते हुओ. पद्मजाको बाएँने लिखा: | ;. भुदधकी जिस भव्य कथाकां तूने - अुल्लेख किया, आुस परसे बहुतसी प्रवित्र वस्ठुओंका स्मरण होता है } हाँ, में असे वहुत सपने देखता हूँ। ये सब केवल हवाओ किले ही नहीं, हैं | अँसा हो, तो में तरह-तरहके पुरुषों; स्यो, लड़कों , और लड़कियोंका जो प्रेम भोग रहा हूँ, असके वोझके नीचे दव ही जाओ” जिस पत्रके बाद दिलीपका अंदाहरण दिनभूर.याद आता. रहा, और गाता रहा :- - ০. - + - ‹ चाजी हो, तन-मन-घन वाजी; . , : वाजी खेदं पीवसे रे, प्रेम टशाय । ; ` हरी तो भओ पीवकी रे,. जीती तो पियु मोर हो, : तननन्‍मन-धन बाजीनुू?# 77, « « » को ल्खिा: ः “तू था तो छत्बी है या मूर्ख है | विकार नहीं समझती ! दाल खानेसे होनेवाला विकार और स्पेश-बिकार, दोनों विशाड़ हैं । दोनों समान प्रवाह (१) में फेरफार करते हैं। ओक विकार बाहरका स्थूल पदार्थ पेय्में डालनेसे . होता है | दूसरा बाहरी बत्तुको देखनेसे होनेवाला मनोश्वचिका परिवर्तन या विकार है । यह विकार जब -सारे जीवनको दिला वेनेवाला होता है, तब हानिकारक हो सकता है ।' ओक स्त्री किसी पुरुषके प्रति विकार हो ^ वद भजन किमका ई मौर मित्तका “१5 वराबर है या नहीं, मिस्के बररेमें में मितमीनान नहीं कर सका । -- से०




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