प्रार्थना प्रबोध | Prarthana-prabodh
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
509
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं. शोभाचंद्र जी भारिल्ल - Pt. Shobha Chandra JI Bharilla
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्राथंना की महिमा १४
नाश करने के लिए नम्रतापूतेक प्रार्थता करते हैं ।
इसी भाव से परमात्मा की प्रार्थना करना उचित है।
अगर तुम भ्राशा को नाश करने के बदले सांसारिक पदार्थों --
घन, पुत्र, स्त्री झादि के लिए प्रार्थना करोगे तो संसार के
पदार्थ तुम्हें लात मार कर चलते बनेंगे झ्नौर तुम्हारी आशाएं'
ज्यों की त्यों श्रधूरी ही रह जाएगी । हां. अनर तुम त्राला-
तृष्णा को नष्ट करने के लिए अन्त:करण में पूर्ण निस्पृहं
वृत्ति जागृत करने के लिए ईश-प्रार्थना करोगे तो संसार के
पदार्थ - जिसके तुम भ्रधिकारी हो-तुम्हें मिलेंगे ही, साथ ही
शाति का परम सुख भी प्राप्त होगा । अतएव भ्राजा को
नष्ट करने की एकमात्र आशा से परमात्मा की प्रार्थना करो ।
यह मत सोचो--ईश्वर तो कभी दिखता नहीं है, उससे
प्रेम किस प्रकार किया जाय ? अगर ईश्वर नहीं दिखता
तो संसार के प्राणी, कीड़ी से लगाकर कु जर तक, समान है।
इस तत्त्व पर विचार करोगे तो ईव्वर से प्रेम करने की बात
ग्रसम्भव न लगेगी । ईश्वर नहीं दिखता तो न सही, संसार
के प्राणियों की ओर देखो और उन्हें भात्म-तुल्य समभो।
सोचो-जंसा मैं हूँ, वेसे ही यह हैं, इस प्रकार इतर प्राणियों
को अपने समान समभने से शने:-शर्ने ईश्वर का साक्षात्कार
होगा--परमात्मतत््व की उपलब्धि होगी - श्रात्मा स्वयं उस
शुद्ध स्थिति पर पहुँच जायगा ।
तात्पयं यह हैं कि ईश्वर का ध्यान करने से आत्मा
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