प्रार्थना प्रबोध | Prarthana-prabodh  

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Prarthana-prabodh   by पं. शोभाचंद्र जी भारिल्ल - Pt. Shobha Chandra JI Bharilla

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पं. शोभाचंद्र जी भारिल्ल - Pt. Shobha Chandra JI Bharilla

Add Infomation About. Pt. Shobha Chandra JI Bharilla

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
प्राथंना की महिमा १४ नाश करने के लिए नम्रतापूतेक प्रार्थता करते हैं । इसी भाव से परमात्मा की प्रार्थना करना उचित है। अगर तुम भ्राशा को नाश करने के बदले सांसारिक पदार्थों -- घन, पुत्र, स्त्री झादि के लिए प्रार्थना करोगे तो संसार के पदार्थ तुम्हें लात मार कर चलते बनेंगे झ्नौर तुम्हारी आशाएं' ज्यों की त्यों श्रधूरी ही रह जाएगी । हां. अनर तुम त्राला- तृष्णा को नष्ट करने के लिए अन्त:करण में पूर्ण निस्पृहं वृत्ति जागृत करने के लिए ईश-प्रार्थना करोगे तो संसार के पदार्थ - जिसके तुम भ्रधिकारी हो-तुम्हें मिलेंगे ही, साथ ही शाति का परम सुख भी प्राप्त होगा । अतएव भ्राजा को नष्ट करने की एकमात्र आशा से परमात्मा की प्रार्थना करो । यह मत सोचो--ईश्वर तो कभी दिखता नहीं है, उससे प्रेम किस प्रकार किया जाय ? अगर ईश्वर नहीं दिखता तो संसार के प्राणी, कीड़ी से लगाकर कु जर तक, समान है। इस तत्त्व पर विचार करोगे तो ईव्वर से प्रेम करने की बात ग्रसम्भव न लगेगी । ईश्वर नहीं दिखता तो न सही, संसार के प्राणियों की ओर देखो और उन्हें भात्म-तुल्य समभो। सोचो-जंसा मैं हूँ, वेसे ही यह हैं, इस प्रकार इतर प्राणियों को अपने समान समभने से शने:-शर्ने ईश्वर का साक्षात्कार होगा--परमात्मतत््व की उपलब्धि होगी - श्रात्मा स्वयं उस शुद्ध स्थिति पर पहुँच जायगा । तात्पयं यह हैं कि ईश्वर का ध्यान करने से आत्मा




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now