काव्य सम्प्रदाय | Kavya Sampraday

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Kavya Sampraday by अशोक कुमार सिंह - Ashok Kumar Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५ मी ) मध्य बढी अरवाभावेक दीवार खटी हो गयी। अंग्रेजी जानते-- वालो तया भ्रेंग्रेज़ी से अनभिज्ञ लोगो के मध्य मिथ्या श्राडम्बर स्थान पा गया । (छ) ग्रामीण समाज को मानसिक और सास्क्ृतिक चेतना की घारा से वज्चित हो जाना पडा । आखिर वह दिन भी आया, जबकि भारतीय सविधान में सस्क्ृत- निप्ठ हिन्दी को राजकीय भाषा स्वीकृत किया गया। इससे येह बात स्पष्ट हो जाती है किं हिन्दी की सस्क्ृतनिप्ठता बड़े महत्त्व की है । यदि हिन्दी को सम्झृत के श्रावार पर विकसित न किया गया तो यह भी पूर्ववर्ती प्रयोगो की तरह व्यय होगा। सस्कृत-साहित्य अ्रपनी विविध ओर समुन्नतत परम्पराग्रो को प्रदान कर हिन्दी को गोरवान्वित कर सकता है। हमारे प्राचीन साहित्य की सर्वोत्कृप्ट देन--भारतीय नव- राष्ट्र के लिए--यही हो सकती है । सस्क्ृत में ही वह शक्ति निहित है: जो एक सहस्न वर्षों से पथ-अ्रष्ट राप्ट्र को सस्क्ृति के उस पथ पर डाल सकती है जो राष्ट्रीय गौरव के उपयुक्त है। इस परिस्थिति में राष्ट्रभापा-सेवको पर जो महान्‌ उत्तरदायित्व आ पडा है, उसके प्रति सजग रहने से ही सफलता सम्भव है। यह नितान्त श्रावश्यक है कि राप्ट्रभापा के अ्रध्ययन-क्रम के पीछे जो दृष्ठिः है उस्म मौलिकता एव गाम्भीर्यं दोनो श्रा जायें। सस्कृत माता कीः सुखद गोद में वगाली, महारष्टी श्रौर गुजराती आदि वहिन इस प्रेम से मिल जाये कि मानो पितृगृह में आकर सगी बहने परस्पर गले मिल गई हो । भारतीय गणतन्त्र की छत्रछाया में यह स्नेह-सम्भेलन चिरकाल तक सुधारस-धार प्रवाहित कर जन-मन को तृप्त करता रहे । श्रेग्रेजी शिक्षा-विज्ञारदों के निर्देश मे श्रावुनिक भारतीय भाषाओो की उच्च क॒क्षाओ्रो एवं सस्क्ृत भाषा का जो पाठ्य-क्रम निर्धारित था




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