ध्वन्यालोक उत्तरार्ध | Dhvanyaloka Uttrardh
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
40 MB
कुल पष्ठ :
744
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ४)
१९८--रामायण तथा महाभारत में अंगीरस का विवेचन
पु
१९९--उक्त विषय में निष्कष
२००--अंगीपरख के विवेचन की आवश्यकता ल्
२०१--रचना के रसप्रवण होने पर अलड्भार के अभाव में भी काव्य :
उपादेय हो जाता है इस बात का उदाहरण. *' :
२०२--अछ्ुण्ण वस्तु से रस की दुष्टि पा 2 *
२०३--गुणीमृतव्यञ्भ थं से प्रतिभा की अनन्तता और नवीनता का
विवेचन
२०४--प्रस्तुत प्रकरण का उपसंहार
२०५-:प्रतिभा के गुण से काम्य में किस प्रकार अनन्तता आती है इस
बात का विवेचन
२०६--वाच्यार्थ की अपेक्षा भी काव्य में नवीनता आ जाती है
२०७--अवस्था भेद इत्यादि का विवेचन
२०८--उक्त विषय में प्रश्न
२०९--वस्ठुयें अपने विशिष्ट अर्थ में ही प्रयुक्त की जाती हैं सामान्य के
साथ विशिष्ट का भी योग रइता है जिससे एक ही वस्तु अनेक
रूपों में आया करती है
२११--प्रत्येक दाशनिक की दृष्टि में शब्द का विशिष्ट अथ ही मानना
पडेगा
२९१--कान्य की अनन्ता में उक्ति वैचिन्यका योग
२९२--अवस्था इत्यादि मेद की शोभा रस ओर ओचित्यसे दी
होती दे ।
२१३ काव्य की अनन्तता का उपसंहार
२१४--काव्यों में कवियों के भाव मिलजाने का देतु
२१५--दो कवियों के भावों में जो संवाद ( मेल ) होता है उसके प्रकार
२१६--प्रकारों की उपादेयता पर विचार
२१७--पूर्वस्थिति का अनुयायी भी काव्य आत्मतस के भिन्न होने पर
सदोष नहीं माना जा सकता
२१८--बस्तु योजना के मेल में तो दोष होता दी नदीं
२१९--प्रस्तुत प्रकरण का उपहार
२२०-- कवियों को निद्शंक होकर कविता करने का उपदेश
२२१-उपसंहासात्मक कारिकाओं में ग्रंथ के विषय इत्यादि का उल्लेख
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