संक्षिप्त हिन्दी शब्दसागर | Shankshipt Hindi Shabdasagar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
81 MB
कुल पष्ठ :
1076
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)আঁনিযাহী ११
ऋपियारी--सब्ञा-खी? [हिं० अंधेरी ] १ वि० प्रकाशरहित | बिना उजेले की।
अपर । २ उपद्रवी धोढ़ों, जैते-श्रेधेरी रात ।
अधथकार ।
शिकारी पक्षियों श्र चीतों की आँख पर सुहा०--भंपेरी कोठरी 5 (१) पेट ।
“बांधी जानेवाली पट्टो । 7. गमं । कोख । (२) घ्र मेद् । रहस्य ।
ऑँधियात्वी--पशा स्री० दे० “अँधियारी” । अंधौटी--सशा জীৎ [বণ সঘ+দত সাত
थिरा पु० [ संण श्रधकार] १ अथवटी, अधौदी ] गैल या घोड़े की श्रास
अन्याय ! भ्रत्याचारा जुल्म । २ उपद्रव। बद करने का उक्कन या परदा ।
गढ़वड़ । कुप्रबंध। अधाधुध | धौंगाधींगी । अरध्यार(91--पज्षा पुं० दे० “अंधेरा 1
अपेरखाता--सप्ा पुं० [हिं० अधेर-+-खाता] भ्रैध्यारीपरतं--सज्षा ली० दे० “अँधेरी” ।
१ दिसाव-कितान अथवा व्यव्हार में श्रध्-पष्ठा पं [सं०] १ बदेलिया।
अत्यधिक गढ़बढ़ी । व्यतिक्रम । २. अन्यथा- व्याध। शिकारी । २ वैदेह पिता भौर
चार। ३ अन्याय । अविचार । ४ कुप्रबंध। कारावर मात। से उत्पन्न नोच ज्गत्ति ।
अधेरना(५--क्रि०ण स० [ हि धपेर ] भंप्ररृत्य--संज्ा पु [ सं०] मगध देश का
श्रषकारमय करना 1 एक प्राचीन राजवश 1
ऑँधेरा-सजा पुं० [सं० भंपकार, प्रा० भंब--सशा स्त्री० दे? “अवा?।
शधयार ] [ छ्ली० अँपेरी ] १. भधकार । , सज्ञा पुं० [ सं० आम्र ] ञ्राम का पेढ़ ।
तम | प्रकाश का अमाव । उजाले का उलटा। भवेक-सशा पुं० [स० ] १ श्राँस। नेत्र ।
२ घुँधलापन | धुंध । २ तबा 1१ पिता।
यौ०--अंधेरा युप > ऐसा अँधेरा जिसमें भवेर--सशा पुं० (स०] १, श्राकाश।
कुछ दिखाई न दे। घोर भधकार । श्रसिमान। २ क्ख | कपड़ा | पट | ३१ क्षियो
३ छाया । परदाई । ४, उदासी। के पदनने की एक प्रकार की एकरगौ
उत्साइ-दीनता । किनारेदार धोती। ४ कपास। ५ एक
सुगधित वस्तु जो हिल म्ली की भतद्ियों
में जमी हुई मिलती है। ६, एक श्व। ७
अम्रक धातु | अवरक । ८ राजपूताने का
एक पुराना नगर । ६, अग्ृत । १० प्राचीन
यर्थो के श्नु सार उत्तर-भारत का एक देश |
सशा पुं० [ स० अम्न | वादल । मेत्र ।
अंबरठडबर--सश्वा पुं० [स० अवर--
आ।टस्वर ] सूर्यास्त के समय कौ लाली ।
अंबरबारी--सज्ञा क्ली० [ सं०] एक भादी
जिसकी जढ़ और लकड़ी से रसकत या
रसौत निकलता है। चित्रा । दारुहल्दी ।
अबरबेलि--पशा सखी ° [ स० श्रवर~-वेहि ]
श्राकाशेल 1
झबराई--पज्ञा खी० [ स० आम ८ आम --
राजी >प/क्त ] आम का वगीचा। आम
= की वारौ 1
त खी [नेरा ] ऊक पहली উহা, বারতা पुं० [स० आम्र-
क राजि या श्राप्नाराम ] धामोँंकी वगिया)
श्रधेरी-सश्ा ली [ ° श्रषेरा] १ शैवराव्प--सका पुं० दे० “अँबराई” |
अधकार। तम। श्रकाशा का अमाव। ক্মনহার--নহা पु० [सं०] १ वह स्थान
२ श्रेंधेरी रात] काली रात। ३ आधी । जहाँ आकाश पृथ्वी से मिला हुआ दिखाई
अंधड़ | ४ घोड़ों या बैलों की आँख पर देता है 1२ कपड़े का छोर 1
डालने का परदा | ष्मवरी--पक्षा, वि० [ स० अम्बर ] जिसमें
मुहा०--अंधेरी डालना या देना= अबर ( सुगधित द्रव्य ) पढ़ा या मिला हो ।
(१) भाँखें मूँदकर दुर्गति कूना। (२) आँख अंबरीप--सज्ा पु० [ स०] श्रयोध्या का
में घूल टालना । धोखा देना । एक सूर्यंवशी परम वैष्णव राजा ।
নিও श्रषकारमय । प्रकाशरहित ।
मुहा०--अंधेरे घर का उजाला+(१)
श्कलीता बेटा | (२) भर्त्यत प्रिय । (३)
सुलज्ञण । शुभ लक्षणवाला। कुलदीपक।
वश कौ मर्याद्रा बढानेवाला। (४) घर की
शोभा । अंधेरा पाख या प्ठ = ऊष्णं पक्त!
मदी । मह अपेरे या अंधेरे मुँह = वड तक्के ।
बढ़े समेरे ।
अधेरा-उजाला--सज्ञा पुं० [ हिं० अँधेरा +-
उजाला ] कागज मोढ़कर बनाया छुश्ा
लडकों का एक खिलौना ।
श्रधेरिया--संशा खी° [ हि अंधेरी+-झ्या
(प्रत्य० ) ]१ अ्रधकार। अपेरा । २ श्रेघेरी
रात | काती रात 1 ३ श्रेंपेरा पक्ष । प्रंपेरा
पाख ।
झविरती
अंबरोक--सशा पुं० [ सं० ] देवता ।
अंबल्य--पश्षा पुं० १ दे० “भ्रम्ल” | २, दे०
#अमल?? 4 1
झंबह--सशा पुं० [स० ] [ ल्ी° अवष्ठा ]
१ पंजाब के मध्य माग का पुराना नाम।
२ अवष्ठ देश में बसनेवाला मनुष्य । ३,
ब्राह्मण पुरुष भौर वैश्य स्री से उत्पन्न एक
जाति। (स्मृति )। ४ महावत | हाथी-
वान | फीलवान | हा
अंबष्टा--पञा स्ती० [स० | १. अ्रवष्ठ की
स्री।२ एक लता । पाढा । बाक्षणी लता ।
৬ हा |
अंया--संशा क््षी० [स०] १ माता।
जननी । माँ। श्रम्मा | २, पार्वती । गौरी ।
दुर्गा । ३ अवष्ठा। पाढ़ा। ४ 'काशी के
राजा इद्रयुम्न की उन तीन कन्याओं में
सबसे वदी निन्द भीष्म पितामह अपने भाई
विचित्रवीयं के लिये हरण कर लाए थे ।
सज्ञा पु० दे० “आम!” |
अबाढ़ा--सशा पु० दे० “आड़? ।
अंबापोखी--सशा खीर [स० अभ्र
पौली = रोटी ] भरमावट । श्रमरस ।
अंबार--सज्ञा पुं० [ फा० ] ठेर । समह ।
अंयारी--सज्ञा सखी? [अ० अमारी ] १
हाथी की पीठ पर रखने का दौदा जिसके
ऊपर एक छज्जेंदार मडप होता है।
२ छज्जा |
अंबालिका--सज्षा खी० [ सं० ] १ माता |
मा। २ शअ्रष्ठा लता पाढ़ा । ३ काशी के
राजा इंद्रयुम्न की उन तीन कन्याक्रों में से
सबसे छोटी जिन्हें भीष्म अपने भाई विचित्र-
वीर्य के लिये हर लाए थे ।
अबिका--सज्ञा सखी? [स० ] १ दुर्गा।
पार्वती । सगवती । देवी । २ माता । माँ ।
१ जैनों की एक देवी। ४. कुटकी का
पेढ़। ५ शभ्रंव्ठा लता। पाढ़ा । ६ काशी
के राजा इंद्रधुम्न की उन तीन कन्याओं में
मेकली जिन्हें भीष्म अपने भाई विचित्रवीय
के लिये हर लाए थे ।
अबिकेय---सज्ञा पु० [ स०] १ श्रविका के
पुत्र। २ गणेश। ३ कार्तिकेय। ४.
घृतराष्ट्र
अविया--सज्ञा खी० [ सं० आम, प्रा० अंब]
आम का छोटा कच्चा फल जिसमें जाली न
पडी टो 1 रिकोरा कैरी ।
अबिरती[--पशा खो० [ सं० अमृत ? | तर
का एक पुराना वाजा । श्रगृत। श्रत
कुटली । उ०-बाज पंविरती श्रति गहगही।
--पदमावत ।
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