नन्ददास -विचारक,रसिक,कलाकार | Nanddas- Vicharak, Rasik, Kalakar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
277
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मन्ददात की जीवनी । १६
का अच्छा परिचय इनसे प्राप्त होता है । वहुत्त सम्भव है नन््ददास कौ उस समय यौवना-
यस्या रही हो । नन्ददात्त की सनी रचनाग्रौ से यह बात सिद्ध होती है कि वे यौवन के
कवि हैं। उनमें वही उल्लास-उमंग प्राप्त होता है जो युवावस्था में प्राप्त होता है तथा
साथ ही उनकी रचनाएँ युवा-कालीन क्रीड़ाओं मौर भावों का चित्र विशेष रूप में प्रस्तुत
करती हैं ।
इन प्रनुमानों के अ्रतिरिवत नन््ददास की रचनाओं से उनके गायक, रसिक
झौर प्रेमी होने के भी संकेत मिलते हैं। 'रपमंजरी' उनकी सहचरी रूप से उपासना
का भी संकेत करती है। हमारा विचार है कि उनकी इस उपासना के रूप का
विस्तृत परिचय रसिक मिव कै सम्बन्ध मे किये गए विभिन्ने प्रनुमानों पर प्रधिक प्रकाश
डालने में सहायक हो सकेगा ।
ऊपर कहा जा चुका है कि नन्ददास ने श्रनेक ग्रंथों में यह उवित दोहराई है कि
मैंने अपने 'एक रसिक मित्र' के कहने से यह रचना प्रस्तुत की है। उनका यह रसिक
मित्र कौन धा--यह विभिन्न विद्वानों के अनुमान का विषय बना है। ननन््ददास की
वार्ता मे रपमंजरी' के नन्ददास कौ मित्र दोने के संकेत मिलते है ।१ सम्भवतः इसी
संकेत को ग्रहण कर झौर रूपमेजरी तथा सहचरी (इन्दुमती) रूप नन्ददास को स्वी-
कृत सत्य स्वीकार करते हुए डॉ० दीनदयालु गुप्त श्रौर बाबू ब्रजरत्वदास' ने 'रूप-
मंजरी' को ही ननन््ददास की परम मित्र स्वीकार किया है। डॉ० दीनदयालु गुप्त रूप-
मजरी के ऐतिहासिक पान होने में की गई संभावना में भी विश्वास करते हैं। उनके
अनुसार रूपमंजरी का लोभी ब्राह्मण के कारण एक अनुपयुक्त पात्र को विवाहित
हो जाने की घटना कवि की कल्पना नहीं हो सकती--उसमें श्रकबर को विवाहिता
हिन्दू राजा की परुथी वाली कहानी कुछ अ्रंश में समाविष्ट है । यहाँ कहानी को कुछ
समय के लिए छोड़ भी दिया जाये तो यह वात तो सिद्ध हो जाती है कि डॉ० गुप्त
फे अनुमान का बहुत कुछ आधार नन्ददास की वार्ता है । 'रूपमंजरी' कौन थी, इसको
यदि हम एक क्षण के लिए भुला दें तो भी इस बात से तो सभी विद्वान सहमत है कि
इन्दुमती के रूप में नन्ददास ने श्रपने आपको प्रस्तुत किया है.। वस्तुत: इस आश्चय की
पुष्टि नन्ददास की कु उक्तियों से हो जाती है । रूपमंजरी मे श्रीकृष्ण-मिलन के दो
मार्गों का उल्लेख करने के बाद रूपमार्ग की चर्चा करते हुए कवि कहता है---
इंदमती मतिमंद पं श्रवर नर्हिनि निबहंति ।
नागर नगधर कवर पग इहि मग छुट्यो चहंति ॥
१. गोवर्धननाथजी के प्राकट्य को वार्ता, पृष्ठ ३६ तथा २५२ वष्णवन की वार्ता,
पृष्ठ ४६१
श्रष्टछाप श्रौर वल्लभे सम्प्रदाय, पृष्ठ १०१
नण० ग्र०, पृष्ठ १३
श्रष्टछाप श्रौर वल्लभ सम्प्रदाय, पष्ठ ७६४
रूपमंजरी, दोहा २२
दर कर हुए हुए
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