बंगला साहित्य दर्शन | Bangala Sahitya Darshan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
311
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भ्राक मुस्लिम वंगला ्रीर उसका साहित्य १७
¦ के नाम पाचवी शताब्दी से पाये जाते है वाद को ग्यारहवी शताब्दी की रचना
“रामचरित' में उनसे मिलते-जुलते नाम पाये जाते ह । “रामचरित' सध्याकर
नन्दीकी रचना है 1
(२) स्वनिन्द नामक एकु वगाली पडित ने लगभग ११५६ ई० मे श्रमरकोप
पर एक टीका लिखी थी। इसमें पंडितप्रवर ने अपने भाष्य को सुबोध्य बनाने
के लिए कोई तीनसौ एसे णन्द डाल दिये, जो सस्कृत नटी ये ग्रौर बगला मालूम
होते है। इस टीका का नाम “टीका सर्वस्व था। मजे की वात यह् है कि यह्
टीका वंगाल से लुप्त हो गई, पर यह सुदूर मालावार मे सुरक्षित रही और
वही से यह सपादित होकर प्रकाशित हुई। इस पुस्तक को वगला भाषा के इति-
दान की हृष्टि से बहुत अधिक महत्व दिया गया है और इसमें जो असंस्क्ृत शब्द
आते हैं, वे प्राचीन वगला के शब्द है। इस विशेष उपकरण का ऐतिहासिक तथा
भाषाशास्त्रीय मूल्य वहुत अधिक होने पर भी हमे इससे केवल ब्दो का ही नान
होता है, पर किसी भाषा को जानने के लिए उसकी वाक््यविन्यासपद्धत्ति से
परिचय वहुत जरूरी है, जिसका इसमे श्रमाव है ।
(३) चर्यापद या चर्या-साहित्य । इस संवच मे ४७ गीत प्राप्त ह 1 यद्यपि
पुस्तक मे ५० गीत थे, तथापि वीच के कुछ पृष्ठ उड जाने के कारण केवल ४७
गीत ही प्राप्त हुए । महामहोपाव्याय हरप्रसाद शास्त्री ने इन |गीतो का श्राविष्कार
नेपाल में किया। उनके अनुसार ये वारहवी शताब्दी के प्रारम्भ के है, पर
श्री राखालदास बनर्जी ने इन्हे चौदहवी णताव्दी के घ्रन्त की रचना वताया है]
भाषा श्रौर साहित्य दोनो के इतिहास कौ ष्टि से इन गीतो का वहत महत्व
टै । इसके श्रतिरिक्त उनसे उस्र समय की परिस्थिति का मी पत्ता चलता दहै)
सहजिया-पंथ के सिद्धों ने इनकी रचना की। यहां इस पथ के सवध में कुछ बताने की
आवश्यकता नही है, क्योंकि सहुजियापंध के गुरु गोरखनाथ श्र मत्स्येद्रनाथ
शआ्रादि के सवध में हिंदी-साहित्य के इतिहासों मे भी वहुत-कुछ श्राता है । यहा
पर इतना ही बनाना वेष्ट होगा कि यद्यपि इन गीतो को वगना मापा के कुछ
उतिहासकारो ने वगला वताया है, तथापि उन्हे समान रूप से हिदी की रचनाः भी
कहा जा सकता है, और ऐसा कहा भी गया है। हम पहले ही बता चुके है कि
भाषा की दृष्टि से हा नसांग के समय में ही वगाल और विहार एक हो चुके थे।
फिर प्राकबगला रचनाओं को या वगला की आदिम रचनाओो को हिंदी कहना
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