भारतीय आधुनिक शिक्षा | Bhartatya Adhunik Shiksha

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Bhartatya Adhunik Shiksha by नामवर सिंह - Namvar Singhनिर्मला जैन -Nirmla Jainप्रो. सूरजभान सिंह - Pro. Surajbhan Singh

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प्रो. सूरजभान सिंह - Pro. Surajbhan Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डा. जाकिर हुसैन का शिक्षादर्शन इसके लिए जाकिर हुसैन कमेटी बनी जिसके अध्यक्ष वेस्वयंहीधे। आपने बुनियादी शिक्षा मेँ. हाथ के काम को बहुत महत्व दिया है। इसमें कहा गया है कि शिक्षा की योजना इस प्रकार से संयोजित की जाए कि उद्योग की क्रिया में इर्द-गिर्द ज्ञान का समन्वय हो सके। उद्योग के द्वारा छात्रों को कारीगर नहीं बनाना है बल्कि उद्योग में मनुष्य के विकास की जो शक्तियां निहित हैं, उनका पूरा लाभ उठाकर बालक के व्यक्तित्व का निर्माण किया जाए। उद्देश्य: बुनियादी शिक्षा का लक्ष्य लोकतांत्रिक समाज के लिए ऐसे नागरिक तैयार करना है जो अपने अंधिकारों और कर्तव्यों को समझते हुए समाज के आर्थिक एवं राजनैतिक जीवन में अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह कर सके। शिक्षकों की तालीम .: बुनियादी शिक्षा की सफलता योग्य शिक्षकों पर निर्भर करती है। अतः शिक्षा का काम संभालने से पूर्व शिक्षकों को उद्योगों की समझ तथा शिक्षण शास्त्र का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। शिक्षकों को मुख्य रूप से उद्योगों, शरीर विज्ञान, स्वास्थ्य, सामाजिक विषयों तथा समन्वित शिक्षण का पूर्णं ज्ञान होना चाहिए। निरीक्षण एवं परीक्षण : बुनियादी शिक्षा कौ सफलता के लिए समय-समय पर शालाओं के लिए निरीक्षक नियुक्त करने चाहिए। निरीक्षकों को स्थानीय समस्याओं पर विचार करके गाला की उन्‍नति के लिए सुझाव और सहयोग देना चाहिए। विद्यार्थियों के स्तर की परीक्षाया जांच के लिए शिक्षा विभाग को स्वयं प्रयत्न करना चाहिए। जांच के अभाव मे न तो विद्यार्थियों एवं शिक्षकों को उपलब्धियों का ही पता चलेगा, न बुनियादी शिक्षा की सफलता का ही। अत: बीच-बीच में कई बार जांच का प्रबंध किया जाना चाहिए। पाद्यक्रम : बुनियादी शिक्षा के पाठ्यक्रम में निम्नलिखित विषयों को शामिल किया जाए, जिससे छात्र अध्ययन के अलावा वह भी सीख सकें जो उनके भावी जीवन के लिए आवश्यक है-जैसे (अ) उद्योग (ब) मातृभाषा (स) गणित (द) सामाजिक ज्ञान (य) सामान्य विज्ञान (ग) चित्रकला एवं संगीत आदि। शिक्षक की अवधारणा डा. जाकिर हुसैन का विचार है कि शिक्षक बच्चों की रुचि, उनके विचार ओर शारीरिक परिवर्तन को अच्छी तरह जानें, समझें और तदनुकूल शिक्षण की व्यवस्था करें। अच्छे अध्यापक में वह विशेषता होनी चाहिए जो एक अच्छे नाटककार, अच्छे उपन्यासकार या अच्छे साहित्यकार, अच्छे इतिहासकार में होती है। वह एक छोरी सी धारणा, एक छोटी सी बात से, एक साधारण सी क्रिया से, चेहरे के रंग से, आंखों से, यानी कि अभिव्यक्ति के साधारण ढंग से ही व्यक्ति की वास्तविकता का पता लगा लेता है। उसे मनोविज्ञान का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए। कली रूपी बालक को एक पूर्ण विकसित सुंदर फूल का रूप देना शिक्षक का महान कर्तव्य है। अच्छे अध्यापक के जीवन में उदारता भी होती है, गंभीरता और दृढ़ता भी। इसकी आत्मा में स्वस्थ और सत्य, रूप और सौंदर्य, नेकी और पवित्रता, न्याय और स्वतंत्रता के प्रदर्शन से एक गर्मी पैदा हो जाती है, जिससे वे दूसरों के दिलों को गरमाते हैं और तपा




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