जैन धर्म का प्राचीन इतिहास भाग 2 | Jain Dharm Ka Prachin Itihas Dwitiya Bhag

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Jain Dharm Ka Prachin Itihas Dwitiya Bhag by परमानन्द शास्त्री - Parmanand Shastri

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about परमानन्द शास्त्री - Parmanand Shastri

Add Infomation AboutParmanand Shastri

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
प्राककथन जैन धर्म का प्राचीन इतिहास और महावीर संघ परम्परा' नाम का यह ग्रन्थ पं० परमानन्द शास्त्रीका लिखा हुआ है । परमानन्द शास्त्री जेन समाज के प्रसिद्ध विद्वान हैं। ग्रन्थ के ४१६ पेज मेने सरसरी निगाह से देखे हैं यह ग्रन्थ भगवान मह॒वीर की पच्चीस सौ वीं निर्वाण जयन्ती के उपलक्ष्य में लिखा गया है । इस पुनीत अभ्रवसर पर परमानन्द जी का यह ग्रन्थ सराहनीय महत्वपूर्ण और सर्वत्र संग्राह्य है | ग्रन्थ सुन्दर है जनाचार्यो, अपभ्रण कवियों और भट्टारकों के इति वृत्त के साथ जन संघ की परम्परा पर अच्छा प्रकाश डालता है। ग्रन्थ में ईसा पूर्व तीसरी शताव्दी से १८ वीं शताब्दी तक के, जो महान ज॑नाचार्य हुए उनका क्रमिक इतिहास संक्षिप्त होते हुए भी उनको जीवन रचनाओं पर पर्याप्त प्रकाश डालता है। ग्रन्थ में जैन धर्म व संस्कृति के किक विकास का संक्षिप्त व सरल रूप देने का प्रयत्न किया गया है। ग्रन्थ की प्रस्तावना में 'थ्रमण संस्कृति' पर अच्छा प्रकाश हाला गया है। 'थ्रमर्णा घब्द के दो भ्रथ्थ हैं, जो सबमें समत्व देख वह निर्मही सच्चा श्रमण है, वह सवको समभाव से देखता है | वह अपने झज्ञ प्रत्यदग से तपर्चर्या कर आत्मा को ऊंचा उठाता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए थी कुन्दकुन्दाचार्य ने इन्द्रियों का निग्रह करने का उपदेश दिया था । समसत्तु बंधवग्गोी. समसुखदक्खों पसंसणिदसमों। समलोट्रकंचणो पुण जीवित मरणो समो समणो।। (प्रवचनसार ३-४१ ) जिसने इन्द्रियों का निग्रह किया, उसने क्या नहीं किया है । इसी निग्रह के अनेक प्रकार हैं-श्रमणों के कई विभाग, श्रमण, वातरशना, तपस्वी श्रादि पठनीय हैं । ऋग्वेद में वातरशना और केशी प्रादिके नाम की प्राणिति भ्रानन्द दायिनी है, उसमे पता नगता है कि जन संस्कृति उस समय से पूर्वतन थी। कई विद्वान इसे ई० पू० २५०० वर्ष मानते हैं, और पांचवीं सहस्नाव्दी से पूर्व भी कई ने समझा है, कई ने हडप्पा और मोहन जोदड़ों मे इसके श्रव देषों को देखा है । श्री परमानन्द जीने, जेन संरक्षति के बारे में जो कुछ लिखा है वह सब अध्येय है । जेन इतिहास का इतना वर्णनात्मक इतिहास अब तक हमारे सामने नहीं आया है। झ्राशा है कि अन्य भाग भी ज्ीघ्र ही हमारे सामने पहच कर छात्र मण्डल की ज्ञान वृद्धि करेगे । । लगभग ७०० आचार्यों एवं प्राकृत, अ्रपश्रंश, संस्कृत और कनन्‍नड भाषा के लेखक कवियों का लघु परिचय रचनाओं पर टिप्पणियाँ बहुत परिश्रम से संकलित की गई हैं। भगवान महावीर के द्वारा प्रारन्ध धमं तथा जीवन परिचय से यह रचना आरम्भ कर लेखक ने ग्यारह गणधरो, पांच श्रुत केवलियों हारा इस धमं के प्रचार का उल्लेख करते हुए जेन संघ के इतिहास का भी यथोचित विस्तार से विवेचन किया है। समग्र साहित्य के रूचिकर अध्ययन के लिये यह पुस्तक पठनीय है । ग्रन्थ के अवलोकन से पता चलता है कि परमानन्द जीने इसके लिखने में महान श्रम किया है । उन्होने श्रपने स्वास्थ्य की विशेष परवाह न करते हण ग्रन्थ मे इतनी अधिक सामग्री एकत्रित की है। जो कार्य बड़े २ विद्वान भी नहीं कर पाते उसे परमानन्द जी ने सम्पन्न किया है। विद्वान लेखक ने जो परिश्रम किया है ७




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now