खंडहरों का वैभव | Khandharon Ka Vaibhav

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मुनि कन्तिसागर - Muni Kantisagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५ रहा होगा। पुराने उतिहासको छोडिये । यह्‌ पौनार हू मं आचार्य व्वोवा भावेने महात्मा ग्रावीके आदेवानुसार पहली वार व्यक्तिगत सत्याग्रहकों क्रियात्मक स्प धा था। इस पॉीनारमें लेक्षकें १९०३में १४वीं अताव्दीका एक शिलालेख पढा था जो वियेप ऐतिहासिक मह्त्ववा था आर जो इतिहासकी किसी गुृत्वीकों सुख्कानेमें सहायक हों सकता था उम समय जिस व्यव्तिके पान वहु क्त था, उसने कसी तरह भा वह्‌ नहा दिया। 2०९५ १म रूख जब पुन गये ता मालम हुश्रा वह लेख किसी मकानकी दीवारमें पथरी जगह छग गया है। इतिहासके अक्षर छोप हो गये २ यह केनमर ह, पौनासे १० मीन दृर। यहा कई स्तम्म हे) और यह एक खडिने हैं जिसपर श्रवण्डिति समवदरण चित्रित हुं--इतना सुन्दर ओर भव्य कि लेखकने श्राजतक एेना समवगन्पं वदा हा नही देखा। इस स्तम्भपर जिस क्रिसानका ढावा है, वह रोज ढेरके ढेर कहें इसपर सुसाता हैँ। यहाँ इतिहासकी डलिपिपर गोवरकी क्लाका लेप हों रहा हैं। ल्षितिजपर छोप उग रहा हैँ २ यह नागरा है, भडारा ज़िलेमें। १९४२में लेखक वहाँ गए तो एक मृतियर १५ पक्तियोका लेख मिला, जिसके ऐति- हासिक महत्वसे प्रभावित होकर उन्हीं इमे चकर कर्‌ किया। मूर्तिकी व्यवस्था ठीक ने हो सकी, क्योकि वह मूर्ति किसानोंके लिए बड़े कामकी थी। वह उसपर ओऔज्ार तेज़ करते थे। सन्‌ १९५१की यात्रामें पाया कि নল मूर्ति किसी सहतकी समाधिमें खण्ड-खण्ड होकर




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