प्रगतिवाद की रूपरेखा | Pragatiwad Ki Ruprekha

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Pragatiwad Ki Ruprekha by मन्मथनाथ गुप्त - Manmathnath Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० प्रगतिवाद की रूपरेखा है । यद्यपि प्रगतिशीलता प्रगति की उत्तरोत्तर व्यापके परिभाषा को श्रपनाती है, पर प्रगतिशीलता किसी भी हालत में सत्‌ और असत्‌ “****सब रोक-थामों से मुक्ति नहीं दिला देती । जो नए समाज का द्योतक है, उसको लाने में महायक होता हैँ वह सत्‌ है, जो नए समाज को रोकता है, उसके भ्रागमन के भागे मे रोड श्रटकाता हु, वही अ्रसत ই। यह भी हो सकता ह कि एक विचार एक समय में क्रातिकारी हो, बाद में वही प्रतिक्रिया का रूप ग्रहण कर ले। जब तक एक देश पराधीन होता ह. तो वहां राष्टीयता प्रगतिम्‌लक होती हं । इसलिए राष्टीयतामृलक सारा साहित्य जिसमे विदेशी साम्राज्यवाद के साथ समग्राम अतर्निहित है, प्रगतिमंलक होता है । पर जब एक स्वतन्त्र देश मे राष्ट्रीयता के तथा राष्ट्रीय उद्योगधचो की वृद्धि के नाम पर मेहनतकश वर्ग को दबाया जाता है, तो राष्ट्रीयता प्रतिक्रिवादी हो जाती है, और उसकी दुहाई देने वाला सारा साहित्य प्रतिक्रिववादी हो जाता हु। इसी प्रकार अन्य गनेक उदाहरण दिए जा सकते हू । अआयसावाद का प्रचारक हमारे नए स्वतन्त्र देश में इस बात की आवश्यकता है कि साहित्य लोगी म ग्राशा उत्णन्न कर के नए संग्रामो के लिए हमको तैयार करे। और किसी देश में कु भी हो, हमारे यहाँ साहित्य को साहित्य रहते हृए मुस्तंदी के साथ समाज- रचता में भाग लेना पडेंगा। प्रगतिशील मतवाद का केवल इतना ही कहना हे । हम म्ररलीलता, पनायनवाद, रहस्यवाद, छायावाद में पडकर अपनी कमे- गक्ति को विघटित नही होने दे सकते ।




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