नया साहित्य | Naya Sahitya
लेखक :
अमृतलाल नागर - Amritlal Nagar,
नरेन्द्र शर्मा - Narendra sharma,
रमेश सिनहा - Ramesh Sinha,
शमशेर बहादुर सिंह - Shamsher Bhahdur Singh
नरेन्द्र शर्मा - Narendra sharma,
रमेश सिनहा - Ramesh Sinha,
शमशेर बहादुर सिंह - Shamsher Bhahdur Singh
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.25 MB
कुल पष्ठ :
100
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
अमृतलाल नागर - Amritlal Nagar
No Information available about अमृतलाल नागर - Amritlal Nagar
नरेन्द्र शर्मा - Narendra sharma
No Information available about नरेन्द्र शर्मा - Narendra sharma
रमेश सिनहा - Ramesh Sinha
No Information available about रमेश सिनहा - Ramesh Sinha
शमशेर बहादुर सिंह - Shamsher Bhahdur Singh
No Information available about शमशेर बहादुर सिंह - Shamsher Bhahdur Singh
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)निराला जी चून्दावनलाल चमां किसी भी वर्तमान कविके विषयमें छुछ लिखना मेरे छिए एक समस्या है और फिर निरालाजी सरीखे कविके लिए लिखना कुछ साहस चाहता है । निरालाजीकी पूर्व-काठीन कविता सब लोगोके लिए नहीं थी । जिनका हिन्दी- भाषा-ज्ञान काफीसे कुछ अधिक रहा हो वे ही उनकी कविताकों समझनेकी क्षमता रखते थे । उनकी कोमल कल्पनाएं और गुम्फित सूक्ष्म विचार नई-नई उपमाएँ और प्रकृतिकी सिन्न भिन्न झलफोंके भिन्न-भिन्न और चित्र विचित्र उद्घाटन ऐसी पदावलिसे प्रस्तुत किये गये जो अभ्यस्त कवियोको भी कुछ सीखनेके लिए विवश करते थे । आरम्भ उनकी कविताको मूत छायावाद समझा जाता था। जो लोग मर्मकों रससे अलग समझनेका आश्रह करते हैं और जो कान्यको शबंतका सीधा ग्लास समझते है उनको छायावादकी सघुर निस्सीमता और व्यापक मसोहकतामे त्रिदंकुप्ता रह जाना पडा | जो लोग कवियोको न केवल पिंगलकी जकड़ोमे बॉधिना चाहते है बल्कि परिपाटियोकी लीकोपर रेगता हुआ देखना चाहते हैं उनको निरालाजीका स्वतन्त्र और अबाध समीर पेडोको उखाडके फेंकनेवाला प्रभंजन प्रतीत हुआ। परन्तु वह युग शीघ्र आया जब रूढियोकी तोड-फोड और साहि्यकी मस्त चाल पर्योय हो उठी। निरालाजी इस प्रगतिके कवि सदासे ही है --मुझको ऐसा आर मसे ही जान फडा । उन्होंने अपनी कत्पनाकों जो वाहन दिया था वह बाढ पर आयी हुई नदीका प्रवाह था जिसपर भखिका ठहरना और ्यानका रमना दूभर सा था । उनकी प्रतिभा चकाचाध कर देने वाली है । वह अपनी वातको जिस प्रकार कहते हैं उसको वहुत कम लोग कह सकते है । वह वारीकसे घारीक कत्पना और विचारको भारीसे भारी बादलपर बैठा सकते हैं और दंसके दलकेसे हलके पंखे पर भी । अब वह हिन्दी-भाषियोको अपनी प्रतिभाका जो प्रसाद दे रहे है वह उनको साधारण जनताके चहुत्त निकट ला रहा है। हम लोगोकी कामना है कि वह हिन्दी और हिन्दुस्तानकी बहुत समयतक सेवा करते रहें । पेड
User Reviews
No Reviews | Add Yours...