उपनिषदो की भूमिका | Upnishdo Ki Bhumika

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : उपनिषदो की भूमिका  - Upnishdo Ki Bhumika

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about राधाकृष्णन - Radha Krishan

Add Infomation AboutRadha Krishan

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
१८ उपनिवदों की भूमिका उपनिषदो की व्याख्या की है उनमें नुसिहोस्तरतापनी उपनिषद्‌ भी साभिल है 1 अन्य उपनिषदे जो मिलती है वे दार्षनिक से प्रधिक धामिक हैं। उनका सम्बन्ध वेद से उतना नहीं है जितना कि पुराण और तंत्र से है। वे वेदान्त, योग प्रथवा सांख्यं का गुशमानि करती है या क्षिव, शक्ति प्रथवा विष्णु की पूजा की प्रशंसा करती रहै? झ्राथुनिक ध्लालोचक आम तौर पर यह मानते हैं कि गद्य में लिखी प्राचीत उपनिषर्दे --ऐतरेय, कौशीतकी, छांदोग्य, कैन, तेत्तिरीय और बृहदु-आ्रारण्यक तथा ईजश् और कठ उपनिषदे--ईसापूव प्राठवीं भ्रौर सातवीं शताब्दियों की हैं | ये सब बुद्ध से पहले की हैं। इनमें वेदान्त भ्पने विशुद्ध मूलरूप में मिलता है प्रोर ये विदव की सबसे प्रारंभिक दाशेनिक रचनाएं हैं । इन उपनिषदों का रचना-काल ८०० से ३०० ई० पू० है, जिसे काल जैस्पर्स विश्व का धुरी युग कहते हैं। उस समय मनुष्य ने पहली वार यूनान, चीन श्रौर भारत मे एकसाथ भौर स्वतंत्र रूप से जीवन के परम्परागत रूप पर शंका प्रकट की थी । भारत का प्रायः समूचा प्रारंभिक वाडः मय ही क्योंकि भ्रज्ञात लेखकों की रचना है, इसलिए हमें उपनिषदों के रचयिताप्नों के नाम भी ज्ञात नहीं हैं। १. परन्तु अ्रधिक पुरानी या मूल उपनिषदों के विषय में काफी विवाद है । मैक्समूलर ने शंकर द्वारा उल्लिखित ग्यारह उपनिपदों तथा “मैत्रायणीय' का अनुवाद किया । ड्यूसेन ने यथपि साठ उपनिषदो का अनुवाद क्रिया, प्र उनके बिचार से उनमें से चौदह ही मूल उपनिषदं ह रौर उनका बैदिक शाखाओं से सम्बन्ध है । यम ने मैक्छमूलर द्वारा चुनी गई बारह उपनिषदों तथा माण्डूबय का भनुवाद किया। कौथ ने भपने 'रिलीजन एण्ड फिलासोफी भवि द वेद एण्ड द उपनिषद्स' में महानारायण” को सम्मिलित किया है । उनकी चौद उपनिषदो की सती डयूसेन की सुची से मिलती है । उपनिषदो के अंग्रेजी भ्रसुवाद इस क्रम से प्रकाशित हुए हैं : राममोहन राय (१८३२), रोअर (१०५३), (“विष्लियोपेका इंडिका ), मैक्समूलर (१८७६-१८८४), सेक्ष ड बुक्त आव द ईस्ट! मीड और चट्टोपाध्याय (१८६६, लंदन भियोसोफिकल सोसाश्टी), सीताराम शास्त्री और गंगानाथ का (१८६८-१६०१), (जी० ए० नटेसन, मद्रास), सीता- नाथ तत्वभूषण (१६००), एस० सी० बसु (१६११), आर? झा (१६२१)। ई० बी० कोबेल, दिरियन्न, द्विवेदी, मद्दादेव शास्त्री और श्री अरविंद ने कुछ उपनिषदों के अनुवाद प्रकारित किए हैं । मुख्य उपनिषदों पर शंकर के भाध्यों के अंग्रेजी अनुवाद भी उपलब्ध हैं। उनकी ब्याख्याओं में अद्रेत का दृष्टिकोण है। रंगरामानुज ने उपनिषदों के अपने माध्यों में रामानुज़ का रृष्टिकोय अपनाया है । मध्व के भाष्यों में द्वैत दृष्टिकोश है । उनके भार्यो के उद्धरण पाणिनि आफिस, श्लाहाबाद से अकाशित उपनिषदों के संस्करण में मिलते हैं।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now