सूर विनय पत्रिका | Sur Vinay Patrikaa

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Sur Vinay Patrikaa by सुदर्शन सिंह - Sudarshan Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १० ] पद पद-संख्या भवसागर मैं पेरिन लीन्हौ ' * २४० भावी काहू सौं नयरे *** २७८ भंगी री3 भजि स्थाम-कमल-पद १३९ भम মন? तोसों किती कही समुझाइ ११७ मन तोसों कोटिक बार कही १२४ मन-बच-क्रम मन$ गोबिंद सुधि करि ` ११२ मन बस होत नाने मरे - -* २१७ मन रः माधव सौं करि प्रीति १२५ महा प्रभुः तुम बिरद कौ लाज १६५ माधौ ज्‌» जौ जन तै निगरे १७१ माधो जू; तुम कत जिय बिसरथौ १ *** २०३ माधौ ज्‌? मन माया बस कीन्हौ ५४ माधौ जू मन सबही बिधि पोच ००० माधौ जू मन हट कठिन নী ° १५९ माधो ज्‌, मो तैँ ओर न पापी १८९ माधौ ज्‌? मोहिं कि की टज १९७ माधौ ज्‌, यह मेरी इक गाई ६५ माधौ ज्‌? सो अपराधी हौ ` ` * १९८ माधौ ज्‌? हों पतित-सिरोमनि २०७ १६२१ पद पद-संख्या माधौ, नैङकु हटकौ गाह ६४ माया देखत ही जु गद *** ५८ मेरी कौन गति बजनाथ ` ` १७५ मेरी तौ गति-पति तुम, *** २३५ मेरी बेर क्यो रहे सोचि ˆ २१० मेरी सुषि लीजौ होः बजराज २७० मेर हृदय नाहि आवत हौ, २६८ मेरौ मन अनत कहाँ सुख पवि ° ३०० मेरौ मन मति-हीन गुसाई ˆ “ˆ १६२ मे तौ अपनी कटी बड़ाई ** २१८ मो सम कौन कुटिल खल कामी ““* १९५ मोसी पतित न और गुसाई १९४ मोसी पतित न और हरे २०९ मोसोी बात सकुच तजि कहिये *** १८५ मोहन के मुख ऊपर वारी' * ३० मोहि प्रभु तुम सों होड़ परी *** १७९ य यह आसा पापिनी दहै -* ६१ यहई मन |! आनंद-अवधि सब॒ ७७ यह सब्र मेरीये आइ कुमति १०१




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